पैर टूटा, आंख सर्जरी… फिर भी छेड़छाड़? कोर्ट ने बुजुर्ग को किया बरी

भोजराज नावानी
भोजराज नावानी

मुंबई की एक कोर्ट ने POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट के तहत दर्ज छेड़छाड़ के एक मामले में 78 वर्षीय बुजुर्ग को बरी कर दिया है। उन पर 2018 में 9 साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न का आरोप था।

लेकिन अदालत ने सबूतों और आरोपी की स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए उन्हें निर्दोष करार दिया।

2018 की घटना, 9 महीने बाद हुई थी शिकायत

यह मामला साल 2018 का है। पुलिस को बच्ची के परिजनों द्वारा घटना के 9 महीने बाद शिकायत दर्ज कराई गई थी।

परिजनों का आरोप था कि बुजुर्ग सीढ़ियों पर आते-जाते बच्ची को आंख मारते थे और अश्लील इशारे करते थे।

केक खिलाने के बहाने छेड़छाड़ का आरोप

शिकायत में यह भी कहा गया कि बच्ची बुजुर्ग के घर एक बर्थडे पार्टी में गई थी, जहां उसे केक खिलाने के बहाने छेड़छाड़ की गई। इस आधार पर POCSO एक्ट और IPC की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया।

बुजुर्ग की हालत: पैर में रॉड, आंखों की सर्जरी, चल भी नहीं सकते

सुनवाई के दौरान आरोपी बुजुर्ग के वकील ने कोर्ट को बताया कि

  • घटना के समय उनकी दोनों आंखों की सर्जरी हो चुकी थी

  • पैर में फ्रैक्चर था, जिसमें रॉड डली थी

  • वह पांचवीं मंजिल चढ़-उतर भी नहीं सकते क्योंकि बिल्डिंग में लिफ्ट नहीं थी

कोर्ट ने पूछा:

“जब व्यक्ति चल ही नहीं सकता, तो ऊपर-नीचे कैसे आएगा और किसी को आंख कैसे मारेगा?”

पुलिस जांच में लापरवाही, कोई पुख्ता सबूत नहीं

कोर्ट में यह भी सामने आया कि

  • पुलिस जांच में देरी हुई

  • सबूत इकट्ठा नहीं किए गए

  • आरोपी के खिलाफ कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले

जज ने यह कहते हुए बुजुर्ग को बरी कर दिया कि

“शक के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”

न्यायपालिका का संतुलन: गंभीर आरोप बनाम आरोपी की परिस्थिति

POCSO एक्ट के तहत मामले बेहद संवेदनशील होते हैं, लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि हर आरोप को बिना जांच के सच नहीं माना जा सकता
स्वास्थ्य के आधार पर कोर्ट ने यह भी ध्यान रखा कि बुजुर्ग के लिए फिजिकली संभव नहीं था कि वे ऐसा अपराध कर सकें।

न्याय मिला, लेकिन सवाल बाकी

इस केस ने दो बातें सामने रखीं —

  1. झूठे आरोपों से निर्दोष लोगों का जीवन कैसे प्रभावित हो सकता है

  2. पुलिस जांच की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े हुए

अब जब बुजुर्ग को बरी कर दिया गया है, तो यह देखना होगा कि पुलिस विभाग कैसे सुधार लाता है और ऐसे संवेदनशील मामलों में लापरवाही से कैसे बचा जाए

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