
इटावा जिले के बकेवर थाना क्षेत्र के दांदरपुर गांव में गुरुवार को ऐसा बवाल मचा कि पुलिस को भी पसीना आ गया।
अहीर रेजीमेंट और यादव महासभा से जुड़े कुछ लोग जब गांव में ‘संवेदनशील श्रद्धा यात्रा’ पर निकले, तो पुलिस ने ‘स्टॉप!’ बोल दिया।
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लेकिन श्रद्धा से ज्यादा शक्ति दिखा दी गई। भीड़ बिफरी, और फिर शुरू हुआ ‘कंकड़ से कम, पत्थर से ज्यादा’ कार्यक्रम — पुलिस पर जमकर पथराव।
पुलिस ने जब देखा कि मामला ‘भक्ति से हटकर बख्त’ पर आ गया है, तो हवाई फायरिंग करनी पड़ी। अब पूरे गांव में ‘सन्नाटा विद भारी फोर्स’ का माहौल है।
अब तक 19 की गिरफ्तारी, 13 गाड़ियाँ सीज़ — पुलिस बनी Sherlock होम गार्ड
पुलिस ने कार्रवाई के तहत अब तक 19 लोगों को धर दबोचा है और 13 गाड़ियों को जब्त कर लिया गया है। वीडियो फुटेज खंगाले जा रहे हैं ताकि ‘कैमरे में कैद क्रांति’ को पकड़ा जा सके।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया — हम पूरी कोशिश में हैं कि कोई भी ‘उकसाने वाला आइटम’ बचे ना!
कहानी की जड़: चोटी, कथावाचक और आधार कार्ड का ‘भाईचारा’
कुछ दिन पहले गांव में कथावाचक मुकुट मणि यादव और संत कुमार यादव के साथ मारपीट हुई, चोटी कटी और मामला इतना गर्माया कि ब्राह्मण समाज को कटघरे में खड़ा कर दिया गया।
पुलिस ने चार ब्राह्मण युवकों को पकड़ा भी — लेकिन ट्विस्ट यहीं नहीं रुका!

अब कथावाचक पर ही फर्जी आधार कार्ड और धोखाधड़ी का केस दर्ज हो गया है, जो जय प्रकाश तिवारी ने कराया। कहानी में अब संत से संदिग्ध बनना बाकी रह गया था, वो भी हो गया!
यादव बनाम ब्राह्मण: गांव में चल रहा ‘वोट बैंक युद्ध का ट्रेलर’?
बवाल के पीछे की बुनियाद अब ‘चोटी से लेकर राजनीति तक’ पहुंच चुकी है। जहां एक ओर यादव संगठन इसे अपमान और न्याय का सवाल मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ब्राह्मण पक्ष भी पीछे हटने को तैयार नहीं।
पुलिस की चेतावनी: सोशल मीडिया पर न बनाएं ‘फायर ब्रांड भाभी’, वरना होगी कार्रवाई
एसएसपी ने कहा है कि “कोई भी अफवाह, एडिटेड वीडियो, जातीय टिप्पणी या फेसबुक-क्रांति” को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
जो भी ऐसा करेगा, वो सीधे ‘थाने की Trending List’ में आ जाएगा।
लाठी नहीं, लॉजिक चाहिए! जातीय बवाल से विकास नहीं, विनाश होता है
दांदरपुर अब सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि UP की सोशल मीडिया वार जोन बन गया है। पुलिस, पंचायत, और पब्लिक तीनों किसी डेली पॉलिटिक्स एपिसोड का हिस्सा लग रहे हैं।
लेकिन सवाल है — क्या जातीय जुनून में इंसानियत खो रही है? और कब तक चोटी, जाति और झगड़े ही सुर्खियां बनते रहेंगे?
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