“राशन के नाम पर चल रही थी ‘आधार की अद्भुत लीला’

सत्येन्द्र सिंह ठाकुर
सत्येन्द्र सिंह ठाकुर

सरकार गरीबों को सस्ता राशन देती है ताकि कोई भूखा न रहे, लेकिन कुछ तेज़ तर्रार जुगाड़बाज सिस्टम को ही भूखा बना देते हैं। रायपुर में PDS (Public Distribution System) में जो राशन कार्ड स्कैम सामने आया है, वो बताता है कि यहां सिर्फ़ अनाज नहीं, सिस्टम की ईमानदारी भी बांटी जा रही थी — वो भी फ्री में!

नाबालिग भी ‘परिवार के मुखिया’ बन बैठे!

जांच में सामने आया कि 1800 से ज़्यादा बच्चों के नाम पर राशन कार्ड बने हैं, वो भी 18 साल से कम उम्र वालों के! यानी कल तक जो बच्चे स्कूल में “बैक टू स्कूल” स्लोगन पढ़ते थे, आज उनके नाम पर “बैक टू राशन शॉप” के कार्ड बन गए।

कहीं-कहीं तो बच्चे खुद ही परिवार के मुखिया बन बैठे — बाल श्रम की नई परिभाषा?

110 साल से ऊपर के लोग भी कर रहे थे राशन की दौड़

अब ये मत पूछिए कि 1,806 लोग 110 साल की उम्र में राशन दुकान कैसे पहुंचे — शायद साइकल से नहीं, सीधा आसमान से आशीर्वाद लेने आए हों।

सरकार को लगा था कि ये लोग “स्वर्गवास” कर चुके होंगे, लेकिन राशन रिकॉर्ड देखकर लगा, “ये तो अमरत्व की खोज कर चुके हैं!”

एक आधार, अनेक राशन कार्ड — असली मल्टीटास्किंग यही है!

86,000 से ज़्यादा राशन कार्ड ऐसे मिले जिनमें एक ही आधार नंबर से अलग-अलग जगहों पर कार्ड बनाए गए। यानी आदमी एक, पहचान कई। रायपुर में अकेले 18,000 ऐसे कार्ड — इतने लोग तो मेट्रो सिटी में एक कॉलोनी में नहीं रहते जितने कार्डों में ये एक आधार घूम रहा है।

आधार कार्ड अगर सच में यूनिक है, तो इनका क्या है? “यूनिक-ली फेक”?

लाखों आधार इनएक्टिव, फिर भी सब खाते हैं अनाज

खाद्य विभाग ने पाया कि 1,05,590 कार्ड्स में आधार नंबर इनएक्टिव है, और 83,872 लोगों ने आज तक ई-केवाईसी नहीं करवाई। फिर भी अनाज ले रहे हैं, योजनाओं का फायदा उठा रहे हैं।

इसका सीधा मतलब — अगर आपकी पहचान सिस्टम में नहीं है, तो शायद आप सिस्टम के बहुत करीब हैं!

ई-केवाईसी के नाम पर “मेरा ई-जुगाड़” एप लॉन्च!

सरकार ने अब ‘मेरा ई-केवाईसी’ ऐप लॉन्च किया है। संदेश साफ है — “भाई, फर्जीवाड़ा बंद करो और खुद को वैलिड बनाओ।”

5 साल से ऊपर के हर इंसान की केवाईसी जरूरी है। और अगर कोई 6 महीने तक राशन नहीं लेता, तो उसका कार्ड “फ्रीज” कर दिया जाएगा। यानी अब राशन नहीं लिया तो पहचान भी नहीं बची!

“जो खा रहा था, वो ज़रूरतमंद नहीं था!”

PDS स्कैम ने फिर दिखाया कि जो सरकारी सिस्टम सबसे ज़रूरी लोगों के लिए होता है, वो सबसे पहले जुगाड़ुओं का हो जाता है।
नाबालिग, बुजुर्ग, इनएक्टिव आधार, डुप्लीकेट पहचान — सबने सिस्टम को खाने में मदद की है।

और वो असली ज़रूरतमंद जो वाकई भूखा है — वो आज भी लाइन में खड़ा है… पहचान लेकर, पर बिना पहचान के।

“भूख का अधिकार” नहीं, “जुगाड़ का अधिकार” चल रहा था!

राशन कार्ड स्कैम सिर्फ सरकारी लापरवाही नहीं है, ये जन-नीति और जन-जिम्मेदारी दोनों पर सवाल है। जब 110 साल का आदमी राशन उठाए और 10 साल का बच्चा परिवार चला रहा हो, तो सिस्टम को फिर से सोचने की ज़रूरत है। अब देखना ये है कि सच में सफाई होती है, या ये भी अगले स्कैम की फाइल बनकर फाइलों की भूख मिटाता है।

“अब खनिज भी आत्मनिर्भर बनेंगे, चीन से मोहभंग जारी है!”

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