
ब्रिटेन की राजधानी लंदन के संसद स्क्वायर में शनिवार को जो हुआ, वह सिर्फ़ एक विरोध प्रदर्शन नहीं था – वह एक राजनीतिक रिएक्शन था।
‘फ़लस्तीन एक्शन’ नाम के कैंपेनिंग समूह पर बैन के विरोध में हुए इस प्रदर्शन में 425 से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया।
उनके हाथों में तख़्तियां थीं, आवाज़ों में गुस्सा था, और नारों में – “हम चुप नहीं बैठेंगे” का ऐलान!
पुलिस बनाम पब्लिक: कौन किसे कंट्रोल करेगा?
मेट्रोपॉलिटन पुलिस के मुताबिक़:
“गिरफ्तार किए गए लोगों में अधिकतर प्रतिबंधित संगठन ‘फ़लस्तीन एक्शन’ के समर्थक थे।”
लेकिन सिर्फ़ समर्थन ही नहीं — 25+ लोगों पर पुलिस पर हमला करने और पब्लिक ऑर्डर भंग करने का भी आरोप लगा है।
टेररिज़्म एक्ट 101: सपोर्ट किया? सीधा 14 साल की छुट्टी!
ब्रिटिश सरकार ने जुलाई में टेररिज़्म एक्ट 2000 के तहत ‘फ़लस्तीन एक्शन’ को आतंकी संगठन घोषित कर बैन कर दिया।
इस क़ानून के अनुसार:
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संगठन की सदस्यता लेना = अपराध
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उसका सपोर्ट करना = अपराध
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सोशल मीडिया पर पोस्ट करना = भी अपराध
सज़ा?
सीधी 14 साल की जेल। यानी जुबान भी खोलनी है, तो पहले लॉयर का नंबर याद कर लो।
‘फ़लस्तीन एक्शन’ बोले – “सरकार हमें बैन नहीं कर सकती, हम तो भावना हैं!”
बैन लगने के बाद संगठन के प्रवक्ता ने स्टेटमेंट में कहा:

“ये प्रतिबंध हास्यास्पद है। इसे लागू करना असंभव है और संसाधनों की बर्बादी है।”
अन्य शब्दों में:
“सरकार कागज़ पर चाहे जितना बैन लगाए, पब्लिक दिल से जो सपोर्ट करे, उसे कैसे रोकेगी?”
क्या सरकार ‘Action’ से डर गई?
ब्रिटिश सरकार ने ‘फ़लस्तीन एक्शन’ को बैन किया, लेकिन जनता ने जवाब दिया – “Banning ‘Action’ is no solution to injustice reaction!”
अब सोचिए, जिस देश ने 100 साल तक इंडिया को नहीं छोड़ा, वो अब तख़्ती उठाने वालों से डर गया?
क्या अगला कदम होगा – “प्रोटेस्टर्स को साइलेंस जोन में भेजो, और पोस्टरों को एक्सरे मशीन में डालो?”
विरोध पर बैन, या बैन पर विरोध?
‘फ़लस्तीन एक्शन’ एक विवादित लेकिन प्रभावशाली कैंपेनिंग समूह रहा है जो इजरायल के खिलाफ़ ब्रिटेन में बने हथियारों की बिक्री के विरोध में सक्रिय रहा।
अब सरकार का कहना है कि यह “कट्टर विचारधारा को बढ़ावा देता है”, जबकि समर्थकों का कहना है – “यह मानवाधिकारों की लड़ाई है, आतंकवाद नहीं।”
गिरफ़्तारी हुई, पर ग़ुस्सा आज़ाद है
इस पूरे घटनाक्रम ने ब्रिटेन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सुरक्षा नीति की बहस को फिर से हवा दे दी है। 425 लोग भले ही थाने चले गए हों, लेकिन उनके हाथों में पकड़ी तख़्तियों का संदेश अभी भी हवा में गूंज रहा है।
“मैं जनसंहार का विरोध करता हूं। मैं फ़लस्तीन एक्शन का समर्थन करता हूं। और अगर आपको ये पसंद नहीं — तो… arrest me too.”
“एंब्लेम का एंगल! हज़रतबल में पट्टिका टूटी, सियासत पूरी फूट गई!”