पाकिस्तान का न्यूक्लियर झूठ उजागर, बम अमेरिका के निकले – वापसी शुरू

अजीत उज्जैनकर
अजीत उज्जैनकर

ऑपरेशन सिंदूर! नाम जितना साधारण, परिणाम उतना ही गहरा। चार दिन की एक सटीक और साहसी सैन्य कार्रवाई ने न केवल पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं की असलियत उजागर की, बल्कि विश्व राजनीति के उन राज़ों की भी परतें खोलीं जिनकी कल्पना भी नहीं की गई थी।

पाकिस्तान की न्यूक्लियर शक्ति—सिर्फ दिखावा

अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि पाकिस्तान के पास कोई स्वतंत्र परमाणु शक्ति थी ही नहीं। जो कुछ वो दशकों से दुनिया को दिखा रहा था, वह दरअसल अमेरिका की गोपनीय न्यूक्लियर तिजोरी का हिस्सा था।

अमेरिका की छिपी रणनीति और 1998 का धोखा

1998 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया, तब अमेरिका ने कड़े शब्दों में विरोध जताया। लेकिन पर्दे के पीछे, उसने पाकिस्तान के ज़रिए एक झूठा न्यूक्लियर परीक्षण करवाया ताकि पूरी दुनिया को लगे कि पाकिस्तान भी अब परमाणु शक्ति है।
असल में, पाकिस्तान अमेरिका के लिए सिर्फ एक न्यूक्लियर गोदाम बन चुका था—दूर एशिया में, ताकि अमेरिका पर कभी कोई खतरा न आए।

अंदर बैठे “अमेरिकी भक्त” और डर की राजनीति

इस नकली न्यूक्लियर छवि को आधार बनाकर भारत में बैठे कुछ “अमेरिकी भक्तों” ने पाकिस्तान का डर फैलाया, ताकि भारत दबाव में रहे।
लेकिन ये सब 2014 के बाद बदल गया।

भारत की रणनीति: पहले मित्रता, फिर मोर्चा

मोदी सरकार ने अमेरिका से रणनीतिक मित्रता बनाते हुए पाकिस्तान पर पैनी नजर रखी। और जब 2024 में पहलगाम में निर्दोषों पर हमला हुआ, तो भारत ने वह किया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी—सीधा हमला।

भारतीय सेना की कार्रवाई: मिसाइलें और मनोवैज्ञानिक चोट

भारतीय सेना ने मिसाइलों से पाकिस्तान की नींव हिला दी। हमारी मारक क्षमता उन परमाणु ठिकानों तक पहुंच गई जो अब तक ‘अदृश्य’ माने जाते थे।

अमेरिका की चिंता और खामोशी

जैसे ही भारत ने इन ठिकानों को निशाना बनाया, अमेरिका को डर सताने लगा। अगर भारत ने कार्रवाई जारी रखी, तो उसके खुद के हथियार तबाह हो जाएंगे और उसकी वैश्विक छवि को गहरा धक्का लगेगा।

चीन की चुप्पी और अमेरिका की दोस्ती की पेशकश

अमेरिका कुछ बोल भी नहीं सका और कुछ रोक भी नहीं सका। इसलिए उसने भारत को “मित्रता” का वास्ता दिया, ताकि भारत अपनी कार्रवाई रोक दे।

चार दिन, एक निर्णायक युद्धविराम

भारत ने हालात की नज़ाकत को समझते हुए केवल चार दिन में शर्तों के साथ युद्धविराम किया। पाकिस्तान की पोल खुल चुकी थी, अमेरिका को अपनी तिजोरी समेटने पर मजबूर होना पड़ा।

अमेरिका की वापसी

आज अमेरिका पाकिस्तान से अपने परमाणु हथियार हटाने की तैयारी में है। अपनी साख बचाने के लिए इसे नाम दिया गया है—“पाकिस्तान का परमाणु सरेंडर”

लेकिन असली सवाल ये है— जब पाकिस्तान के पास न्यूक्लियर पावर थी ही नहीं, तो सरेंडर किस बात का?

सबसे बड़ी सीख: जब सेना और नेतृत्व मज़बूत हो…

ये कहानी सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई की नहीं है—यह उस साहस, संयम और रणनीति की गाथा है, जो विश्व को झुका देती है।

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