“टेरर 2.0: पाकिस्तान में फिर चालू हुआ ‘आतंकी स्टार्टअप'”

अजीत उज्जैनकर
अजीत उज्जैनकर

जिस तरह से भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकियों के ठिकाने उड़ा दिए थे, लगा था पाकिस्तान सबक लेगा… लेकिन नहीं! अब लगता है, पाकिस्तानी आतंकवादियों ने नया बिज़नेस प्लान बना लिया है – “अबकी बार, डिजिटल जिहाद बार-बार!”

ऑनलाइन क्राउडफंडिंग से ‘बम-बैंकिंग’

लश्कर-ए-तैयबा ने उम्म अल-कुरा (मुरीदके) में अपने पुराने जले-झुले ठिकाने का नवीनीकरण शुरू कर दिया है। चौंकाने वाली बात यह है कि इसकी फंडिंग पंजाब सरकार और कुछ भावुक “डोनेटर्स” के जरिए हो रही है। हां, वही डिजिटल ट्रांजेक्शन वाला तरीका जिससे आम आदमी बिजली का बिल भरता है – आतंकवादी उससे RDX खरीद रहे हैं।

जैश की नई ‘313 शाखाएं’ – ये कोई बैंक नहीं, टेरर ब्रांच हैं

जैश-ए-मोहम्मद ने तो एक कदम और आगे बढ़ाया है। भाईसाहब ने 313 नए आतंकी ठिकानों की योजना बनाई है, और उसके लिए बाकायदा ऑनलाइन फंडिंग ड्राइव चला रहे हैं – जैसे कोई NGO हो। फर्क बस इतना है कि ये “सेव ह्यूमैनिटी” नहीं, “डिस्ट्रॉय ह्यूमैनिटी” मिशन है।

पाकिस्तान सरकार भी कर रही है ‘आतंकी CSR’

माना कि सरकारों को अपने नागरिकों की चिंता होती है, लेकिन पाकिस्तान ने तो सीधे लश्कर और जैश को पुनर्निर्माण का आश्वासन दे डाला है। पाक वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगजेब ने खुद कबूला कि 15% डिजिटल ट्रांजेक्शन आतंक फंडिंग में जा रही हैं। भाई, ये तो मानो खुद ही रिपोर्ट कार्ड बना रहे हों – “हम फिर से ग्रे लिस्ट में जाने के लिए पूरी तैयारी कर चुके हैं!”

TRF ने लिया पहलगाम हमले की जिम्मेदारी, भारत ने दिया ऑपरेशन सिंदूर का जवाब

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोषों की हत्या TRF ने की थी, जो लश्कर का ही मुखौटा है। भारत ने इसका माकूल जवाब 7 मई को दिया — “ऑपरेशन सिंदूर”, जिसमें पाक और POK में 9 आतंकी ठिकाने तबाह कर दिए गए।

पाकिस्तान – “द रीब्रांडेड टेरर टूरिज्म डेस्टिनेशन”

पाकिस्तान बार-बार कहता है – “हम आतंक के खिलाफ हैं”, लेकिन उसके ही बैकयार्ड में TTP, BLA, ISIS-K, LeT और JeM का मेला लगा है। अमेरिका ने 1993 में ही चेतावनी दी थी, और अब फिर से FATF की लटकती तलवार पाकिस्तान के सिर पर है।

‘नया पाकिस्तान’, पुराना एजेंडा

आतंकी संगठनों की ऑनलाइन फंडिंग और पाकिस्तान सरकार की मूक सहमति दिखाती है कि भले ही तकनीक बदल गई हो, सोच वही पुरानी जहर वाली है। अब सवाल ये है कि क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय फिर से आंख मूंदे बैठेगा?

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