
जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने सोमवार को पहलगाम हमले के बाद एक अहम आतंकवाद-विरोधी अभियान चलाया, जिसमें तीन आतंकवादी मारे गए। इन आतंकवादियों में पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड मूसा भी शामिल था। यह अभियान ‘ऑपरेशन महादेव’ के नाम से जाना जाता है, जो भारतीय सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ की संयुक्त मुहिम थी।
ऑपरेशन महादेव का नाम क्यों?
‘ऑपरेशन महादेव’ का नाम न सिर्फ सामरिक रूप से बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह नाम श्रीनगर के पास स्थित महादेव पीक से लिया गया है, जो स्थानीय लोगों के लिए एक पवित्र स्थल और पॉपुलर ट्रेकिंग रूट है। यह चोटियां जबरवान रेंज का हिस्सा हैं, जहां से लिडवास और मुलनार के इलाके दिखाई देते हैं। इस नाम के पीछे भगवान शिव (महादेव) का पवित्र संबंध भी है, जो सावन के पवित्र महीने के दौरान और भी अर्थपूर्ण हो जाता है।
मुठभेड़ की शुरुआत और सफलताएं
चिनार कोर के अनुसार, मुठभेड़ 28 जुलाई को लिडवास के जनरल एरिया में शुरू हुई। इंटेलिजेंस से मिली सूचना के आधार पर सुरक्षा बलों ने हरवान के मुलनार क्षेत्र में घेराबंदी की। इस ऑपरेशन में आतंकवादियों को घेरकर नष्ट किया गया, जिससे पहलगाम हमले के बाद की कड़ी कार्रवाई सफल साबित हुई।
पहलगाम हमले का दर्द और जवाबी कार्रवाई
पहलगाम हमले में 26 निर्दोष लोगों की हत्या हुई थी, जिसमें आतंकियों ने पर्यटकों से उनका धर्म पूछकर निर्दयता दिखाई। इसके बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई के तौर पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ लॉन्च किया, जिसमें पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर के नौ आतंकवादी ठिकानों को तबाह किया गया। ऑपरेशन महादेव इसी कड़ी में एक निर्णायक कदम था।

ऑपरेशन महादेव में जम्मू-कश्मीर में तीन आतंकवादी मारे गए, जिनमें पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड मूसा भी शामिल था। यह ऑपरेशन भगवान शिव की पवित्र महादेव पीक के नाम पर रखा गया। सुरक्षा बलों ने हरवान के मुलनार क्षेत्र में इंटेलिजेंस के आधार पर बड़ी सफलता हासिल की।
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