
उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद स्थित बेरुआरबारी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र से आई एक अजीबोगरीब और शर्मनाक खबर ने स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल दी है। यहां बिजली न होने की स्थिति में डॉक्टरों ने महिला की डिलीवरी टॉर्च की रोशनी में करवा दी। जी हां, आपने सही पढ़ा – विज्ञान का चमत्कार नहीं, व्यवस्था का तमाशा है ये!
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मामला खुलते ही हड़कंप, जांच टीम गठित
जैसे ही यह खबर मीडिया और सोशल मीडिया पर वायरल हुई, स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में तीन सदस्यीय जांच कमेटी बना दी गई और कहा गया कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।
प्रशासन की स्टाइल कुछ यूं रही –
“पहले अंधेरे में डिलीवरी करा लो, फिर जांच की रोशनी से छानबीन कर लो!”
सिस्टम फेल या पावर कट एक्सपेरिमेंट?
स्थानीय सूत्रों की मानें तो अस्पताल में इमरजेंसी बैकअप या जनरेटर तक उपलब्ध नहीं था, और मरीजों को बिजली के भरोसे नहीं, टॉर्च के सहारे भगवान भरोसे छोड़ा गया था।
स्वास्थ्य विभाग की साख पर फिर सवाल
यह घटना सिर्फ बिजली की नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और जवाबदेही के करंट की कमी को उजागर करती है। लगातार ऐसी घटनाएं यह बताती हैं कि यूपी में चिकित्सा सेवाएं अक्सर इमरजेंसी मोड में नहीं, जुगाड़ मोड में चल रही हैं।
प्रशासन बोले: जांच जारी है, व्यवस्था सुधरेगी
CMO कार्यालय ने बयान जारी कर कहा कि “घटना दुर्भाग्यपूर्ण है और जांच के बाद दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।”
लेकिन जनता जानना चाहती है:
“जब हर घर बिजली का दावा किया जा रहा है, तो अस्पतालों में अंधेरा क्यों?”
“जन्म रोशनी में हो या अंधेरे में, सिस्टम को फर्क नहीं पड़ता”
बलिया की यह घटना एक कटु सच्चाई को सामने लाती है — कि जहां जनता को उम्मीद होती है रोशनी की, वहां प्रसव भी टॉर्च से कराना पड़ता है। यह सिर्फ एक लापरवाही नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर एक सवालिया निशान है।