
चुनावी साल है… ऐसे में हर पार्टी की जुबान पर “जनता जनार्दन” और आंखों में “वोट बैंक” होता है। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो सीधा नोट बैंक खोल दिया है — मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के नाम पर।
अब बहनों को 10,000 रुपये सीधे खाते में मिलेंगे और 6 महीने बाद 2 लाख रुपये का जैकपॉट।
हां, बस नौकरी नहीं होनी चाहिए घर में… वरना सरकार बोलेगी, “बहन जी, अगली बार कोशिश करना।”
पोर्टल लॉन्च: अब नौकरी मांगने नहीं, फॉर्म भरने जाओ बहन!
एक और “सरकारी पोर्टल” का जन्म हो गया है — ग्रामीण विकास विभाग के इस डिजिटल संतान से महिलाएं अब ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगी।
हां, थोड़ा जुगाड़, फोटो साइज, आधार लिंकिंग और दस्तावेज़ों की खानापूरी होगी… लेकिन उम्मीद है कि बहनें इसे “योजना” नहीं, “अपॉर्च्युनिटी” समझेंगी।
और अगर नहीं समझें, तो याद रखिए — पोर्टल से ज़्यादा, पोर्टेबिलिटी जरूरी है!
₹10,000 की सीड मनी: सरकार बोली “थोड़ा चाय-नाश्ता हो जाए बहन जी!”
शुरुआत में महिलाओं को ₹10,000 दिए जाएंगे — ताकि वे रोजगार की ओर पहला कदम बढ़ा सकें।
किसी ने ब्यूटी पार्लर खोला तो कोई सिलाई मशीन खरीदेगी, कुछ तो व्हाट्सएप पर “गोल्ड कोटेड ज्वेलरी 99 रुपए” भी बेचेंगी और फिर सरकार जांचेगी — क्या आपने पैसे से “रोजगार” बनाया या “रंगोली” बनाई?
6 महीने बाद जांच: चुनावी डेट भी पास, रिपोर्ट कार्ड भी!
अब मजेदार बात ये है कि छह महीने बाद एक टीम आएगी जांचने — “बहन जी, आपने सरकार के पैसे का क्या किया?”
अगर आपकी दुकान चल निकली, या मुर्गी पालन सेंटर फूलने-फलने लगा, तो सरकार ₹2 लाख की प्रोत्साहन राशि और दे देगी।

नीतीश कुमार: साइलेंट स्टेप्स, लेकिन सही टाइमिंग
नीतीश कुमार ने इस योजना का ऐलान ऐसे टाइम पर किया है जब चुनाव पास है और विपक्ष के पास जुमलों के अलावा कुछ नहीं। उनकी राजनीति एकदम “रोलर बॉल पेन” जैसी है — आवाज नहीं करता, लेकिन चलता बहुत है।
साइलेंट मोड में चलती स्कीमें ही चुनाव में ज्यादा पॉवरफुल रिंगटोन बजाती हैं!
किसको मिलेगा फायदा? और किसे मिलेगा ‘गुड लक नेक्स्ट टाइम’?
योग्यता की शर्तें भी बड़ी साफ़ हैं, घर में कोई सरकारी नौकरी वाला नहीं होना चाहिए। एक परिवार से सिर्फ एक महिला। जीविका दीदी हों या स्वतंत्र महिला — सभी अप्लाई कर सकती हैं। जो इन शर्तों में फिट नहीं बैठतीं, उन्हें सरकार ने प्यार से बोला है — “आपके लिए कोई और स्कीम आएगी बहन जी, चिंता ना करिए।”
राजनीति की भाषा में इसे कहते हैं “वोट पहले, वोटर बाद में खुश!”
इस योजना का सीधा असर महिलाओं की आर्थिक हालत पर हो न हो, सीधा असर वोटिंग मशीन पर जरूर होगा। गांव की महिलाओं के लिए पैसा मतलब आत्मनिर्भरता नहीं, बल्कि सम्मान होता है — और ये सरकार उसी सम्मान की कीमत जानती है। और राजनीति में जो सम्मान के साथ-साथ सम्मान राशि दे दे — वो ही सरकार कहलाती है महाराज!
वोटर्स को टारगेट करना हो, तो “घर-घर बहन” सबसे मजबूत यूनिट है!
मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना कोई सामान्य योजना नहीं है — ये एक राजनीतिक ब्रह्मास्त्र है। जहां पुरुष वोटर जाति देखकर वोट देते हैं, वहीं महिला वोटर “सम्मान और सुविधा” देखकर — और यही बात समझ गए हैं नीतीश बाबू। अब देखना है कि 10,000 की शुरुआत और 2 लाख की मंज़िल वाली ये योजना सरकारी बुलेट ट्रेन बनती है या सरकारी रिक्शा।
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