
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने ग़ज़ा युद्ध को इसराइल के लिए “स्वीकार्य शर्तों” पर समाप्त करने और बंधकों की रिहाई के लिए नई वार्ता शुरू करने का निर्देश दिया है।
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब एक ओर हमास ने युद्ध विराम समझौते को स्वीकार कर लिया है, और दूसरी ओर इसराइली सरकार ने ग़ज़ा शहर के उत्तरी हिस्से पर बड़े पैमाने पर हमले की मंज़ूरी भी दे दी है।
क़तर-मिस्र मध्यस्थता का प्रस्ताव, नेतन्याहू की चुप्पी
सोमवार को हमास ने 60 दिन के युद्धविराम प्रस्ताव पर सहमति जताई थी।
क़तर के अनुसार, इस योजना के तहत बचे हुए इसराइली बंधकों में से कम से कम आधे को रिहा किया जाना था।
हालांकि, नेतन्याहू ने अब तक इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है।
वीडियो संदेश में बड़ा एलान
ग़ज़ा डिवीजन के मुख्यालय के दौरे पर सैनिकों को संबोधित करते हुए नेतन्याहू ने एक वीडियो बयान में कहा:
“मैंने बंधकों की रिहाई के लिए तुरंत बातचीत शुरू करने का निर्देश दिया है। लेकिन हमारी सैन्य तैयारी भी पूरी है।”
उन्होंने बताया कि कैबिनेट ने हमले की योजना को मंज़ूरी दे दी है, भले ही उसे अंतरराष्ट्रीय और घरेलू विरोध का सामना क्यों न करना पड़े।
हमले की योजना और संभावित विनाश
इस नई योजना में ग़ज़ा शहर के उत्तरी हिस्से पर एक बड़ा सैन्य अभियान शामिल है।
यह कदम इसराइल की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जो कहती है कि “बातचीत के साथ दबाव” भी ज़रूरी है।
युद्ध की शुरुआत और अब तक का नुकसान
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यह युद्ध 7 अक्टूबर 2023 को शुरू हुआ, जब हमास ने दक्षिणी इसराइल पर हमला किया था।
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इस हमले में 1,200 लोग मारे गए और 251 को बंधक बना लिया गया था।
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इसराइली आंकड़ों के अनुसार, अब केवल 20 बंधक ही जीवित होने की संभावना है।
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दूसरी ओर, ग़ज़ा के हमास-नियंत्रित स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि इसराइली हमलों में अब तक 62,192 फलस्तीनी मारे गए हैं।
आगे क्या? बातचीत या टकराव?
हालांकि नेतन्याहू ने बातचीत के निर्देश दिए हैं, लेकिन जिस तरह से नई सैन्य कार्रवाई को भी मंज़ूरी दी गई है, उससे यह सवाल उठता है:
क्या यह वार्ता सच्ची पहल है, या सिर्फ़ रणनीतिक दबाव?
इसराइली मीडिया के अनुसार, जैसे ही वार्ता के लिए स्थान तय होगा, वार्ताकार भेजे जाएंगे। लेकिन ज़मीनी हालात अभी भी गंभीर और संवेदनशील बने हुए हैं।
इसराइल की ओर से दो रास्तों पर चलने की कोशिश – बंधकों की रिहाई के लिए कूटनीतिक वार्ता, और समानांतर सैन्य दबाव – यह बताता है कि ग़ज़ा संकट फिलहाल थमने नहीं वाला। आने वाले दिन तय करेंगे कि शांति की पहल सफल होगी या टकराव और गहरा होगा।
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