
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान केवल उनके राजनीतिक नेतृत्व तक सीमित नहीं था। उन्होंने अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ खड़े होकर अपने जीवन के कुल 3,259 दिन यानी लगभग 9 साल ब्रिटिश जेलों में बिताए। यह सिर्फ़ सज़ा नहीं थी, यह आत्मबल, आदर्श और विचारधारा की परीक्षा थी। नेहरू ने जेल में रहकर चरखा काता, किताबें पढ़ीं और भारतीय इतिहास को एक नई दृष्टि से समझा।
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पहली गिरफ़्तारी और आनंद भवन की तलाशी
1921 में जब अंग्रेज़ सरकार ने कांग्रेस की वॉलंटियर ब्रिगेड को गैरकानूनी घोषित किया, तो पंडित नेहरू और उनके पिता मोतीलाल नेहरू को गिरफ्तार कर लिया गया। मोतीलाल आनंद भवन में काग़ज़ों की समीक्षा कर रहे थे, जब पुलिस तलाशी का वारंट लेकर आई। मोतीलाल ने चुटकी लेते हुए कहा, “तलाशी लेने में आपको छह महीने लगेंगे।” यह गिरफ़्तारी एक तरह से आज़ादी की ओर पहला आत्मबलिदानी कदम था।
नाभा की जेल और हथकड़ियों की चोट
1923 में नेहरू पंजाब के नाभा में एक सिख जत्थे के साथ दाखिल हुए और प्रशासन के मना करने के बावजूद वहाँ रुके। नतीजा यह हुआ कि उन्हें हथकड़ियाँ पहनाकर, तीसरे दर्जे के रेल डिब्बे में बिठा कर ले जाया गया। नाभा जेल में उन्हें न कपड़े बदलने मिले, न नहाने की अनुमति। हालांकि बाद में उन्हें नाभा छोड़ने के आदेश के साथ छोड़ा गया, लेकिन यह घटना उनके अंदर की आग को और तेज़ कर गई।
चरखा, सूत और आत्मकथा
नेहरू जेल में केवल सज़ा काटने नहीं गए थे। वहाँ उन्होंने चरखे पर 30,000 गज सूत काता, ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ जैसी महान पुस्तक लिखी और अपने विचारों को परिपक्व किया। जेल उनकी साधना स्थली बन गई थी, जहाँ आत्मनिरीक्षण और अध्ययन उनके रोज़ के अभ्यास थे। शुरू में जब चरखा लाना मना था, तब उन्होंने नेवाड़ बुनना शुरू कर दिया था, ताकि समय का सदुपयोग हो।
माँ और पत्नी के अपमान पर मौन प्रतिरोध
जब उनकी माँ और पत्नी कमला नेहरू उनसे मिलने जेल आईं और जेलर ने उनका अपमान किया, तो नेहरू ने एक महीने तक किसी से भी न मिलने का फैसला लिया। उनका कहना था, “मैं जेलर को फिर से अपमान का मौका नहीं देना चाहता।” नेहरू का यह मौन प्रतिरोध भी उतना ही प्रभावशाली था जितना उनका सार्वजनिक भाषण।
जेल में गिलहरियाँ, कुत्ते और कनखजूरा
नेहरू का जेल जीवन सिर्फ़ गंभीर अध्ययन तक सीमित नहीं था। वो गिलहरियों की अठखेलियाँ देखते, कुत्तों को पालते, और कभी-कभी कनखजूरों से भी निपटते। एक रात उन्हें लगा कि उनके पैरों पर कुछ चल रहा है। टॉर्च जलाकर देखा, तो कनखजूरा था! वे तुरंत कूद गए — एक आम इंसान की तरह, लेकिन महान सोच के साथ।
जेल में दिनचर्या: योग, दौड़ और बागवानी
नेहरू की जेल में दिनचर्या बेहद अनुशासित थी। वो सुबह भोर में उठते, एक मील दौड़ते, और फिर योगासन करते। उनका प्रिय आसन था शीर्षासन। जेल में उन्होंने बैडमिंटन, वॉलीबॉल जैसे खेल भी खेले और बागवानी की। बरेली और अहमदनगर जेल में ये उनका रोज़ का व्यायाम बन गया था।
बिरला की पेशकश ठुकराई
जब पत्नी कमला नेहरू के इलाज के लिए पैसों की ज़रूरत पड़ी, तब बिरला परिवार ने नेहरू को मासिक धन देने की पेशकश की। लेकिन नेहरू ने ये कहकर मना कर दिया कि “मैं संघर्ष में हूँ, बिकने नहीं आया।” उन्होंने अपनी किताब की रॉयल्टी और छोटी बचत से कमला और इंदिरा को यूरोप भेजा।
‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ की रचना
नेहरू का सबसे लंबा जेल प्रवास अहमदनगर जेल में हुआ — 1040 दिन। यहीं उन्होंने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ नामक पुस्तक की रचना की, जो भारतीय सभ्यता, संस्कृति और विचारों का गहन दस्तावेज़ है। किताब ने भविष्य की पीढ़ियों को स्वतंत्रता की बौद्धिक नींव दी।
जेल में नेता नहीं, विचार जन्मा
जवाहरलाल नेहरू के लिए जेल कोई सज़ा नहीं थी — वो एक तपस्थली थी, जहाँ विचारों का जन्म हुआ, चरित्र गढ़ा गया और आज़ादी की असल कीमत समझी गई।
3259 दिन जेल में बिताकर भी उनका मन कभी कैद नहीं हुआ।
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