75 साल के नसीर साहब: जिनकी असली एक्टिंग ऑफ स्क्रीन भी चलती रही

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

1975 में ‘निशांत’ से फिल्मी करियर की शुरुआत करने वाले नसीरुद्दीन शाह जब पहली बार पर्दे पर आए, तो खुशी के बजाय उदासी ज़्यादा थी। दूरदर्शन में रिजेक्शन, निजी जीवन की उथल-पुथल और कलाकार के रूप में पहचान बनाने की जद्दोजहद – ये सब उनकी कहानी के अहम हिस्से हैं।

पिता से दूरी, माँ से गहरा लगाव

नसीर के अपने पिता से संबंध बहुत अच्छे नहीं थे। पर उनकी माँ, जो ग़ुस्से में भी स्नेह लुटाती थीं, हमेशा उनका सहारा बनी रहीं। उनकी आत्मकथा ‘And Then One Day’ में माँ की गर्म साँसों से पलकों को छूने का ज़िक्र पढ़ने वालों को भावुक कर देता है।

पहली शादी, जलन और जुदाई

19 साल की उम्र में 34 साल की पाकिस्तानी महिला परवीन मोराद से नसीर ने शादी कर ली। एक बेटी हिबा भी हुई, लेकिन समय के साथ रिश्ते में दरारें आने लगीं। नसीर ने स्वीकार किया कि उन्हें अपनी बेटी से जलन होने लगी थी – एक ईमानदार और कड़वा आत्मस्वीकार।

NSD से FTII तक और अल्काज़ी का प्रभाव

नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा और फिर पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में पढ़ाई के दौरान ही नसीर की कला निखरने लगी। अल्काज़ी जैसे गुरुओं की छाया और गिरीश कर्नाड की सिफारिश से श्याम बेनेगल की फिल्म ‘निशांत’ मिली।

मासूम, मंथन, आक्रोश – आर्ट सिनेमा का चमकता सितारा

नसीरुद्दीन शाह ने ‘मासूम’, ‘स्पर्श’, ‘मंथन’, ‘आक्रोश’, ‘भूमिका’ जैसी फ़िल्मों में अभिनय कर यह साबित कर दिया कि अभिनय सिर्फ़ ग्लैमर नहीं, गहराई भी होता है। उनकी मौजूदगी ही फ़िल्म को कलात्मक बना देती थी।

कमर्शियल फ़िल्मों में भी जादू

‘त्रिदेव’ का “ओए ओए”, ‘डर्टी पिक्चर’ का “ऊ ला ला” – नसीर कमर्शियल फिल्मों में भी पीछे नहीं रहे। हालांकि खुद को कभी फ़िल्म स्टार नहीं माना, लेकिन स्क्रीन पर उनकी उपस्थिति ने सबका ध्यान खींचा।

बेबाक बयानों के बादशाह

  • अनुपम खेर को “जोकर” कहना

  • दिलजीत दोसांझ का समर्थन

  • फ़िल्म अवॉर्ड्स को वॉशरूम हैंडल बनाना

  • लव जिहाद के मुद्दे पर स्पष्ट राय

शाह हमेशा से अपनी सोच पर अडिग रहे हैं। चाहे बात राजेश खन्ना को खराब अभिनेता कहने की हो या पाकिस्तान के सिंधियों से माफ़ी मांगने की – वो कभी रेटॉरिक के पीछे नहीं छुपते।

पुरस्कारों पर ठंडी प्रतिक्रिया

  • पद्म श्री, पद्म भूषण, 3 राष्ट्रीय पुरस्कार, 3 फ़िल्मफेयर
    फिर भी नसीरुद्दीन शाह कहते हैं कि ये सब “लॉबिंग और सिफ़ारिश से मिलते हैं।” उन्होंने एक बार फ़िल्मफ़ेयर ट्रॉफी को वॉशरूम हैंडल में बदल दिया था – अवॉर्ड कल्चर पर उनका ये कटाक्ष खूब चर्चा में रहा।

एक कलाकार, एक विचारक

नसीरुद्दीन शाह सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि समाज और राजनीति पर बोलने वाले दुर्लभ कलाकार हैं। उनकी राय भले ही सबको ना भाए, पर उसमें सच्चाई और आत्ममंथन की झलक साफ़ दिखती है।

75 साल की उम्र में भी नसीरुद्दीन शाह केवल एक ‘वेटरन एक्टर’ नहीं, बल्कि एक विचारशील व्यक्तित्व हैं – जिनका अभिनय जितना गहरा है, उतना ही गहरा है उनका जीवन। उनका ये सफ़र बताता है कि कला सिर्फ प्रदर्शन नहीं, आत्मा की अभिव्यक्ति भी होती है।

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