
नागालैंड के RMSA-2016 बैच के शिक्षक अपनी नियमितीकरण और वेतनमान की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं।
16 सितंबर को लगातार सातवें दिन भी उन्होंने आंदोलन जारी रखा और स्कूल शिक्षा निदेशालय से नागालैंड सिविल सचिवालय तक एक शांतिपूर्ण मार्च निकाला।
क्या हैं शिक्षकों की मांगें?
समान लाभ, समान दर्जा
प्रदर्शनकारी शिक्षक चाहते हैं कि उन्हें 2010-13 बैच के समकक्षों की तरह वेतन और राज्य कैडर में शामिल किया जाए।
बैनर और नारों के साथ उन्होंने शिक्षा विभाग की कथित “अनदेखी” पर सवाल उठाए।
“हम कोई अस्थायी हिस्सा नहीं हैं”
NRMSATA-2016 के अध्यक्ष इमलीटेमजेन इमचेन ने कहा:
“हम राज्य की शिक्षा व्यवस्था का एक अभिन्न अंग हैं। RMSA दिशानिर्देशों में स्पष्ट कहा गया है कि राज्यों को अलग संवर्ग नहीं बनाना चाहिए।”
अदालतें हमारे साथ, सरकार क्यों नहीं?
2022 में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने शिक्षकों के पक्ष में फैसला दिया। सरकार ने वेतन ₹31,000 से घटाकर ₹25,000 किया था, जिसे अदालत ने गलत माना। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा, फिर भी, इमचेन का आरोप है कि सरकार 14 अगस्त को दायर की गई एक पुनर्विचार याचिका का हवाला देकर आदेश लागू नहीं कर रही।
सरकार क्या कह रही है?
राज्य सरकार का तर्क है कि RMSA शिक्षक संविदा के आधार पर रखे गए थे। उनका कार्यकाल राष्ट्रीय योजना की समाप्ति तक सीमित था। फैसला सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा याचिका के बाद ही लिया जाएगा।

Naga Mothers Association की अपील
नागा मदर्स एसोसिएशन (NMA) ने इस मामले में राज्यपाल से हस्तक्षेप की अपील की है और सरकार से कहा है कि वह अदालती आदेशों में देरी न करे।
“ये शिक्षक हमारे बच्चों को पढ़ाते हैं, इन्हें सज़ा नहीं मिलनी चाहिए,” – NMA
यह आंदोलन क्यों मायने रखता है?
यह शिक्षकों की गरिमा और नौकरी की सुरक्षा का मुद्दा है। यह सवाल उठाता है कि क्या शिक्षा योजनाओं के नाम पर अस्थायीकरण जायज है?
यह केस देश भर के अनुबंधित शिक्षकों के लिए मिसाल बन सकता है।