मुस्लिम युवाओं के लिए ओपन लैटर- आपके लिए आपको ही आगे आना होगा

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)

धर्म को कभी भी सियासत का हथियार नहीं बनाना चाहिए — यह बात सब जानते हैं, जिसे न सिर्फ़ मुसलमानों को, बल्कि पूरे समाज को सुनना चाहिए।

कट्टरपंथी लोग युवाओं की तन्हाई और दर्द का फ़ायदा उठाकर उन्हें ग़लत रास्ते पर मोड़ देते हैं। और इस जहर का इलाज सिर्फ़ सरकार के पास नहीं है — बल्कि मौलवी, बुद्धिजीवी, शिक्षक, और परिवार के बड़ों को मिलकर करना होगा।

“बेचारगी नहीं, भागीदारी में है इज़्ज़त”

“मुस्लिम युवाओं को अपनी ताक़त बेचारगी में नहीं, बल्कि समाज की भागीदारी में दिखानी चाहिए।”

युवा साइंस, बिज़नेस, आर्ट और समाज सेवा में आगे आएं। क्योंकि जब कोई समाज सिर्फ़ “पीड़ित” बनकर रह जाता है, तो वो अपने ही भविष्य से हाथ धो देता है।

“समाज को चाहिए नए हीरो, नई कहानियाँ”

“नफ़रत और गुस्से से नहीं, कहानी और कला से समाज बदलता है।” तमिलनाडु की दलित फ़िल्मों का उदाहरण आपके सामने है , जिन्होंने दबे-कुचले लोगों को आवाज़ और फ़ख़्र दिया। ठीक वैसे ही, मुस्लिम समाज को भी कहानीकारों और कलाकारों की ज़रूरत है, जो धर्म को डर से, और पहचान को गुस्से से आज़ाद करें।

“कोई भी पैदा होते ही कट्टर नहीं होता। कट्टरता तब पनपती है जब अच्छे लोग चुप रहते हैं।”

जब समाज के समझदार और नैतिक ताक़त वाले लोग बोलना बंद कर देते हैं, तो उस जगह को कट्टर विचारधारा भर देती है।

ख़ुद की कमियाँ देखना ग़द्दारी नहीं, बल्कि हिम्मत है।” खामियों को देखे, सुधार करे और नई राह बनाए। “आतंकवाद की लड़ाई धर्मों के बीच नहीं है, बल्कि उन लोगों के बीच है जो ज़िंदगी को क़ीमती मानते हैं और जो उसे बर्बाद करना चाहते हैं।”

ये केवल मुस्लिम युवाओं के लिए नहीं, बल्कि हर उस युवा के लिए है जो अपने भविष्य को गुस्से की आग में नहीं, सोच की रौशनी में देखना चाहता है।

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