
जब चुनाव नजदीक आवेला, त हर पार्टी के नजर एके वोट बैंक पर टिक जाला – मुस्लिम वोट। अबले ई मानल जाला कि मुसलमान एकजुट होके कवनो एक पार्टी के समर्थन करत रहलें। बाकिर अब ई वोट बैंक में दरार पड़ गइल बा – अउर ई दरार बा ‘अशराफ’ आ ‘पसमांदा’ मुसलमानन के बीच।
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‘पसमांदा’ शब्द खुद में एगो लंबा इतिहास राखेला। ई ऊ मुसलमान हउवें जे सामाजिक रूप से पिछड़ा जातियन से आवेलन – जइसे कुंजड़ा, अंसारी, मंसूरी, दर्जी, राइन, नाई आ फकीर। ई लोगन के संख्या भारत के कुल मुस्लिम आबादी में 80% से अधिक बा, बाकिर राजनीतिक मंच पर इनकर आवाज़ अबले सुने के ना मिलल।
अब मुसलमान सवाल पूछत बाड़ें: “वोट त दिहनी, लेकिन मिलल का?”
बिहार में मुसलमानन के आबादी करीब 17% बा। बाकिर जवन प्रतिनिधित्व मिलल बा, ऊ अधिकतर सैयद, पठान, मलिक, शेख जइसन ऊँच जाति वाला ‘अशराफ’ मुसलमानन के ही मिलल बा। पसमांदा अब पूछे लागल बाड़ें – “का मुस्लिम वोट बैंक के नाम पर हमनी के सिर्फ इस्तेमाल कइल गइल?”
NDA के नया दांव – ‘पसमांदा मुसलमान’
प्रधानमंत्री मोदी खुद कई बेर पसमांदा मुसलमानन के मुद्दा उठवले बाड़ें। भाजपा अउर जदयू मिलके अब ई सिग्नल दे रहल बा कि ऊ लोग अब सिर्फ बहुसंख्यक पर ना, बलुक पसमांदा समाज के भी प्रतिनिधित्व देवे के सोचत बा। अंसारी, मंसूरी, दर्जी, नाई जातियन से आवे वाला लोगन के योजनाओं में जगह दिहल गइल बा।
पसमांदा नई पीढ़ी: अब चुप ना बैठे वाली
आज सोशल मीडिया आ जमीनी आंदोलनों के ज़रिए पसमांदा युवा आपन हक मांग रहल बाड़ें। ऊ लोग पूछ रहल बा – “MY समीकरण में ‘M’ के मतलब का सिर्फ अशराफ बा?” RJD पर ई आरोप लाग रहल बा कि मुस्लिम प्रतिनिधि के नाम पर सिर्फ ऊँच जाति वाला मुसलमान के आगे बढ़ावल गइल।
AIMIM के ओवैसी – सीमांचल में बदलाव के बीज
ओवैसी जब सीमांचल इलाका में सक्रिय भइलें, त पसमांदा तबका उनका साथ जुड़ल। बाद में भले प्रभाव घट गइल, बाकिर ई साबित हो गइल कि अगर पसमांदा लोग एकजुट हो गइल, त चुनावी गणित बिगड़ सकेला।
का नया पसमांदा मंच बनल जाई?
अब कई गो छोट संगठन आ सामाजिक मंच बन चुकल बा, जे कहत बा – “अगर पसमांदा के टिकट ना मिलल, त ई बार बहिष्कार होई।” ई मांग सिर्फ हक ना, बलुक चेतावनी ह।
ट्रेंड बदलत बा: मुस्लिम वोट अब मोनोलिथिक ना रहल
बिहार चुनाव 2025 अब सिर्फ सरकार बनावे वाला चुनाव ना होई, ई तय करी कि का मुस्लिम समाज अब आपन अंदर के विविधता के पहचानी, आ का पसमांदा तबका आपन राजनीतिक मुकाम खुद तय करी।
सियासत के नया अध्याय के शुरुआत?
ई हलचल धीमा बा, बाकिर मजबूत बा।
अगर ई पसमांदा जागरूकता संगठन में बदलल, त बिहार ही ना, पूरा भारत के राजनीति में नया मोड़ आ जाई।
“अब पसमांदा वोट बैंक ना, पसमांदा आवाज बनल चाही।”
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