
मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम ज़िले में इटारसी के रहने वाले आरिफ खान चिश्ती ने इंसानियत और धार्मिक सौहार्द की मिसाल पेश की है। उन्होंने वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज को अपनी एक किडनी दान करने की पेशकश की है।
आरिफ ने बाकायदा एक भावुक चिट्ठी लिखी और संत के आधिकारिक ईमेल व वॉट्सऐप नंबर पर भेजी।
“आपके आचरण और व्यवहार से मैं बहुत प्रभावित हूं”
आरिफ ने अपनी चिट्ठी में लिखा:
“आपके वीडियो देखकर आपके व्यक्तित्व से जुड़ाव हो गया है। आप सिर्फ एक संत नहीं हैं, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक हैं।”
उन्होंने बताया कि जबसे उन्हें महाराज की दोनों किडनियों के फेल होने की जानकारी मिली, वे काफी परेशान हो गए। उसी वक्त उन्होंने फैसला कर लिया कि अगर उनकी किडनी काम आ सकती है, तो वे उसे जरूर देंगे।
“आप संसार की ज़रूरत हैं, मैं रहूं या न रहूं…”
आरिफ की चिट्ठी में एक ऐसा जुमला है जिसने लाखों दिल छू लिए:
“मैं चाहे रहूं या न रहूं, आप संसार की ज़रूरत हैं। मेरे इस छोटे से तुच्छ उपहार को स्वीकार करने की कृपा करें।”
इस भावुक पेशकश के बाद सोशल मीडिया पर आरिफ को जमकर सराहना मिल रही है। लोग उन्हें “इंसानियत का सच्चा प्रतीक” बता रहे हैं।

कौन हैं आरिफ खान चिश्ती?
आरिफ खान इटारसी, ज़िला नर्मदापुरम (मध्यप्रदेश) के निवासी हैं। वो ऑनलाइन जॉब करते हैं और रोज़ाना प्रेमानंद महाराज के प्रवचन सुनते हैं।
उनके परिवार के सभी सदस्य — माता-पिता, पत्नी और भाई — उनके फैसले के साथ खड़े हैं। महज़ 12वीं पास आरिफ की सोच और संवेदनशीलता को देखकर सोशल मीडिया पर लोग उन्हें “डॉक्टरेट ऑफ ह्यूमैनिटी” दे रहे हैं।
सोशल मीडिया का रिएक्शन: “धर्म नहीं, कर्म बड़ा होता है!”
आरिफ की चिट्ठी वायरल होने के बाद ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर लोग एक सुर में बोल रहे हैं —
“यही है असली भारत!”,
“मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना”,
“जहां आरिफ जैसे लोग हों, वहां नफरत की कोई जगह नहीं है।”
आश्रम की प्रतिक्रिया और AI फोटो विवाद
हाल ही में संत प्रेमानंद महाराज की AI जनरेटेड तस्वीर वायरल हुई थी, जिसके बाद आश्रम ने FIR भी दर्ज कराई थी। लेकिन इस सकारात्मक खबर के आने से संत प्रेमानंद समर्थकों में एक बार फिर आशा और प्रेरणा का संचार हुआ है।
दिलों को जोड़ने वाली इंसानियत की असली खबर
आरिफ खान का यह कदम बताता है कि धर्म, जाति या मजहब से ऊपर उठकर इंसानियत ज़िंदा है। ये सिर्फ एक किडनी डोनेट करने की पेशकश नहीं है, ये मूल्य आधारित भारत की एक झलक है — जहां “आप” का जीवन “मेरे” अस्तित्व से बड़ा होता है।
“जब दिल मिलते हैं, तो नफरतें खुद-ब-खुद हार जाती हैं। आरिफ ने जो किया, वो सिर्फ एक मेडिकल डोनेशन नहीं, बल्कि उम्मीद का ट्रांसप्लांट है।”