
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज आईसीएआर पूसा में एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए ट्रंप के टैरिफ निर्णय पर अप्रत्यक्ष प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा:
“हमारे किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के हित सर्वोपरि हैं। भारत कभी इनके साथ समझौता नहीं करेगा, चाहे इसकी कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।”
यह बयान सीधे तौर पर उस दबाव का जवाब माना जा रहा है जो अमेरिकी टैरिफ और ट्रेड वार्स के जरिए भारत पर डाला जा रहा है।
मोदी की डेयरी डिप्लोमेसी और 31,500 करोड़ की बोइंग डील रद्द
जैसे ही मोदी ने किसानों का ज़िक्र किया, थोड़ी देर बाद खबर आई कि भारत ने 31500 करोड़ रुपये की बोइंग डील रद्द कर दी है — जिसे ट्रंप सरकार की नीतियों पर करारा जवाब माना जा रहा है।
मोदी के शब्दों में:
“हम झुक सकते हैं, लेकिन अपने अन्नदाताओं को नहीं झुकने देंगे।”
(वैसे थोड़े साल पहले यही अन्नदाता सड़क पर झुका था, पर चलिए…)
अखिलेश यादव का हमला: “भाजपा को 10 साल पहले ध्यान आना चाहिए था”
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पीएम मोदी के बयान पर तगड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा:
“भाजपा को तब सोचना चाहिए था जब कृषि कानून लाए गए, जब एमएसपी की गारंटी नहीं दी गई, जब दूध और आलू सड़कों पर फेंके गए।”
उन्होंने आगे कहा:
“युवाओं को नौकरी नहीं मिली, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, भारत चारों तरफ से घिर गया है।”
विदेश नीति पर तीखा तंज: “हर देश से दोस्ती थी, अब सब नाराज़ हैं”
अखिलेश ने सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाते हुए कहा:
“लोग कहते थे कि भारत के दुनिया से अच्छे संबंध हैं, पर अब अमेरिका टैरिफ बढ़ा रहा है, पड़ोसी देश मुंह फेर रहे हैं, और हमारी स्थिति ‘ना घर के रहे, ना घाट के।’”
कह सकते हैं कि अखिलेश ने विदेश नीति को WhatsApp ग्रुप से left कर दिया गया member बता डाला।
बेरोजगारी और कृषि संकट: “दोनों साथ-साथ डूब रहे हैं”
अखिलेश ने यह भी कहा कि:
“हम किसानों की आमदनी दोगुनी नहीं कर पाए, न ही युवाओं को नौकरी दे पाए। ये सरकार सिर्फ़ वादे करने में माहिर है, ज़मीन पर कुछ नहीं।”
वास्तव में, 2025 तक किसानों की इनकम दोगुनी होनी थी, अब वो पूछ रहे हैं: “इनकम तो छोड़ो, गेहूं का रेट ही बता दो भाई?”
टैरिफ की लड़ाई या राजनीति की चीत्कार?
PM मोदी और ट्रंप के बीच चल रही टैरिफ तकरार अब सिर्फ व्यापार का मामला नहीं रह गया है – ये भारत की आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक तस्वीर को भी परिभाषित कर रही है।
एक तरफ मोदी सरकार का दावा है कि “हम किसान के साथ हैं”, वहीं विपक्ष का आरोप है कि “आपको अब याद आया?”
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