
एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपना ‘माइक्रोफोन मोमेंट’ ले लिया — और कहा कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा, क्योंकि मोदी जी ने उन्हें वादा किया है।
अब इसमें दो समस्याएं हैं:
भारत अभी भी रूस से तेल खरीद रहा है। मोदी और ट्रंप की कोई बातचीत हुई ही नहीं।
विदेश मंत्रालय की सफाई: “ट्रंप जी थोड़ा आराम कर लें”
भारतीय विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के बयान पर तुरंत प्रतिक्रिया दी और कहा:
“ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई है। पीएम मोदी ने ट्रंप से इस विषय में कोई बात नहीं की है।“
यानि ट्रंप साहब को शायद कोई सपना आया था… या शायद GPT से बात करके उसे ही मोदी समझ लिया?
ट्रंप का उद्देश्य noble है… पर तरीका नोबल प्राइज लायक नहीं
ट्रंप का तर्क ये है कि अगर दुनिया रूस से तेल खरीदना बंद कर दे, तो रूस की फंडिंग रुक जाएगी और यूक्रेन-रूस युद्ध जल्दी खत्म हो सकता है।

“Sounds ideal… लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि दुनिया का पेट्रोल पंप, फिलहाल रूस से ही टैंक फुल करा रहा है।”
“व्हाइट हाउस नहीं तो वाइट झूठ ही सही!”
ट्रंप के बयानों का ट्रैक रिकॉर्ड तो ऐसा है जैसे:
“हर दिन एक नया दावा, हर बार बिना डेटा वाला ड्रामा!”
ट्रंप पहले भी दावा कर चुके हैं कि उन्होंने किम जोंग उन को शांत कर दिया। कोरोना पर सबसे बेस्ट कंट्रोल अमेरिका ने किया। और अब मोदी से ‘तेल नहीं खरीदने’ का वादा भी ले लिया… बस बात किए बिना!
भारत-रूस तेल व्यापार: हकीकत क्या है?
भारत रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीद रहा है, खासकर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बाद छूट और डिस्काउंट में। भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के आधार पर “राष्ट्रीय हित” में निर्णय लेता है। यानी ट्रंप की बातों को “भविष्यवाणी” से ज़्यादा “फैंटेसी” की कैटेगरी में डालें।
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