
बिहार में मोदी का तीसरा दौरा: सत्ता की तैयारी या विकास का शंखनाद? तीन महीनों में तीसरी बार बिहार: सिर्फ संयोग नहीं जब एक प्रधानमंत्री किसी राज्य का रुख तीन बार करे वो भी सिर्फ तीन महीनों में, तो ये सिर्फ इत्तेफाक नहीं, बल्कि एक रणनीतिक इशारा है। बिहार इन दिनों उसी रणनीति का केंद्र बनता दिख रहा है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 जून को सीवान में एक बड़ी जनसभा करने जा रहे हैं। यह सिर्फ चुनावी रैली नहीं, बल्कि एक “फाइनल पुश” माना जा रहा है—सीधा संदेश कि बिहार अब केवल वादों का मैदान नहीं, बल्कि मिशन मोड में है।
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बिक्रमगंज से सीवान तक: 50,000 करोड़ की विकास गाथा
मोदी का पिछला दौरा 29-30 मई को हुआ था, जिसमें उन्होंने पटना एयरपोर्ट का नया टर्मिनल शुरू किया, बिहटा एयरपोर्ट की नींव रखी और 50,000 करोड़ की परियोजनाएं बिहार को समर्पित कीं। अब सीवान में होने वाली सभा में एक और नई सौगात की उम्मीद जताई जा रही है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने साफ़ किया है कि यह सभा सिर्फ भाषण नहीं होगी, बल्कि बिहारवासियों के लिए एक और बड़ा तोहफा भी लाएगी।
मोदी की सक्रियता: क्या बिहार बना मिशन 2025 का लॉन्चपैड?
अप्रैल में मधुबनी, मई में रोहतास, और अब जून में सीवान — ये तीनों दौरे एक सुरक्षा और सियासत के दोहरे समीकरण को दर्शाते हैं।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ और सीमा पार कार्रवाई के बाद पीएम मोदी का बिहार में रहना सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मविश्वास और राजनीतिक फोकस का प्रतीक भी है।
क्या ये संकेत है कि भाजपा बिहार को 2025 के विधानसभा चुनावों के लिए रणनीतिक केंद्र बना चुकी है?
सीवान की रैली: लालू युग पर सीधा हमला?
कभी लालू प्रसाद यादव और शहाबुद्दीन जैसे नेताओं का गढ़ रहा सीवान अब सत्ता परिवर्तन का प्रतीक बन रहा है। मोदी का यहां से जनसभा करना “मंच की रस्म” नहीं, बल्कि राजनीतिक हस्तक्षेप है—जो सीधे आरजेडी की जड़ में चोट करता है।
बिहार में एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन की लड़ाई अब सिर्फ सियासी नहीं, बल्कि वैचारिक और विकास की दिशा तय करने वाली लड़ाई बन चुकी है।
विकास बनाम विरासत: बिहार बना नई सियासत की प्रयोगशाला
बिहार की धरती पर अब लड़ाई जातिगत समीकरणों और अपराध की विरासत से ऊपर उठकर इन्फ्रास्ट्रक्चर, युवाओं और निवेश पर शिफ्ट हो रही है। मोदी का बार-बार आना यह जताता है कि भाजपा बिहार को अब एक ‘Super India’ का सेंटर बनाना चाहती है।
20 जून सिर्फ तारीख नहीं, एक political flashpoint बनने जा रही है, जहां से ये तय होगा कि 2025 में बिहार अतीत की ओर जाएगा या भविष्य की ओर।
सीवान की सभा से गूंजेगा 2025 का बिगुल?
प्रधानमंत्री का यह दौरा एक high-impact political strategy का हिस्सा है, जो यह सुनिश्चित करने आया है कि बिहार अब पीछे मुड़कर न देखे।
जहां एक ओर आरजेडी की विरासत कमजोर पड़ रही है, वहीं भाजपा नए बिहार का सपना बेच रही है—विकास के नाम पर, सुशासन के वादे के साथ।
अब देखना ये है कि 20 जून को सीवान से उठी आवाज बिहार की राजनीति को किस दिशा में मोड़ती है—विकास की धार बनेगी या विरासत की दीवार फिर से खड़ी होगी?