
मणिपुर के एकमात्र राज्यसभा सांसद सनाजाओबा लीशेम्बा को अब लगता है ट्विटर (या कहें “X”) की राजनीति ज़मीनी राजनीति से ज़्यादा टेढ़ी होती जा रही है। एक एक्स यूज़र शालिनी शुक्ला ने उन्हें ‘अरम्बाई टेंगोल’ संगठन का नेता बताकर जो पोस्ट ठोकी, उससे सांसद साहब इतने व्यथित हुए कि उन्होंने सीधे पुलिस कमिश्नर और साइबर क्राइम सेल को पत्र ठोक दिया।
क्या कहा गया शिकायत में?
सांसद जी के निजी सचिव मैसनाम शिवदत्त ने शिकायत दर्ज कराते हुए लिखा कि “शालिनी की पोस्ट ने सांसद के चरित्र का हनन किया है। एक झूठे कैप्शन के जरिए उन्हें उस घटना से जोड़ने की कोशिश की गई है, जिसमें नाम्बोल सबल लेईकाई में असम राइफल्स पर हमला हुआ था।”
अब ये तो कोई बात नहीं हुई! ट्विटर पर कुछ भी लिख देने से कोई “आतंकवादी” घोषित हो जाए? अगली बार कोई ग़लती से “Arambai Tengol” को “Amul Butter” समझ बैठे, तो किसान आंदोलन तक पहुँच जाएंगे!
सोशल मीडिया पर राजनीति: एक नया अखाड़ा
अब भैया, सोशल मीडिया पर झूठा बोले कौवा काटे वाली कहावत तो रही नहीं। यहां तो जो सबसे पहले पोस्ट करे, वही सबसे बड़ा पंडित!
पर सांसद जी ने समझदारी दिखाई — कोई ट्वीट करे, तो तुरंत रिपोर्ट करें।
क्योंकि अब ये “Retweet नहीं, Report वाला जमाना है।”
नेता की इमेज Vs नेट की आज़ादी
एक ओर फ्री स्पीच का झंडा है, तो दूसरी ओर नेताओं की ब्रांड इमेज की रक्षा। मामला बड़ा बारीक है। कुर्ता पहन लीजिए तो नेता, और अगर कोई और पहन ले तो संगठन का दंगाई — ये फर्क ट्विटर पर कौन समझे?

सांसद जी की शिकायत बताती है कि डिजिटल इमेज अब किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस से कहीं ज्यादा संवेदनशील मुद्दा बन चुकी है।
“फेक न्यूज़” या “फेक्ट न्यूज” — सच्चाई किसकी?
इस पूरी घटना ने एक बार फिर ये सवाल उठाया है कि सोशल मीडिया पर वेरिफिकेशन का ठेका किसके पास है?
क्या अब हर ट्वीट के साथ “कृपया विशेषज्ञ से पुष्टि कर लें” टाइप वॉर्निंग आनी चाहिए? या फिर ट्विटर भी IRCTC की तरह हो जाए — “आपका ट्वीट अभी वेटिंग में है, पुष्टि के बाद कन्फर्म किया जाएगा।”
जनता क्या सीखे?
कुछ भी पोस्ट करने से पहले दिमाग ऑन और कैप्शन ऑफ करें। नेताजी की तस्वीर देखकर संगठन की पहचान न करें — ये CBSE की MCQ नहीं है। अगर फिर भी मन करे लिखने का, तो ड्राफ्ट में सेव करें, पुलिस स्टेशन जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
इस प्रकरण से सीख मिलती है कि डिजिटल दौर में ट्वीट भी तलवार से कम नहीं। और नेताजी तो पहले से ही मैदान में थे — अब ट्विटर के मैदान में भी आ गए हैं। “बोलने की आज़ादी है, लेकिन जुबान से पहले दिमाग इस्तेमाल करने की भी आज़ादी रखो। वरना आपका ट्वीट ट्रेंड नहीं, FIR बन सकता है!”
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