सरकार का “पावर कट”! मेडागास्कर में विरोध से फ्यूज उड़ा

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

मेडागास्कर, जहां पहले लोग बिजली और पानी को मिस कर रहे थे, अब वो सरकार को भी मिस करेंगे — या शायद नहीं। पिछले कई दिनों से सड़कों पर उतरे गुस्साए युवा, जो बिजली के बल्ब से ज़्यादा तेज़ चमक रहे थे, अब सरकार को ब्लैकआउट मोड में डाल चुके हैं।

“माफ़ कीजिए, हमसे नहीं हो पाया” – राष्ट्रपति रजोएलिना

सोमवार की शाम, राष्ट्रपति एंड्री रजोएलिना ने टीवी पर आकर बड़ी नम्रता से कहा:

“अगर सरकार ने अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी नहीं कीं, तो हम इसे स्वीकार करते हैं और माफ़ी मांगते हैं।”

Translation: System Error 404: Accountability Not Found.

प्रदर्शन इतना पावरफुल था कि लाइट चली गई… और सरकार भी!

बिजली और पानी की कटौती के खिलाफ शुरू हुआ ये आंदोलन अब पॉलिटिकल शॉर्ट सर्किट बन चुका है।

22 लोग मारे गए, 100 से अधिक घायल, और राजधानी में हालात ऐसे कि लोग अब सरकार की जगह जनरेटर से उम्मीद कर रहे हैं।

UN बोले: “मानवाधिकार का बल्ब फूटा है!”

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख ने साफ कहा –

“प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षा बलों की कार्रवाई निंदनीय है।”

लेकिन मेडागास्कर सरकार ने कहा –

“UN के आंकड़े Fake News हैं, या शायद ‘लोड शेडिंग में गिनती गड़बड़ा गई’।”

असली सवाल ये हैं…

क्या बिजली-पानी ना होने पर सरकारें भी पिघलती हैं?

या ये सिर्फ “Load Shedding of Leadership” है?

क्या युवाओं को अब देश चलाने देना चाहिए… या कम से कम इन्वर्टर?

सरकार का आखिरी स्टेटमेंट: “माफ़ कर दीजिए, लाइट नहीं थी”

एक अफसर ने ऑफ द रिकॉर्ड बताया:

“दरअसल, हम मीटिंग कर रहे थे… लेकिन पंखा बंद था, लाइट नहीं थी, पानी भी नहीं… तो सरकार ने भी सोचा – छोड़ो यार, ये काम हमारे बस का नहीं।”

जब सरकार पावर की कमी से नहीं, पब्लिक प्रेशर से गिरती है — तो समझ जाइए कि लोकतंत्र में जनरेटर से ज़्यादा ताकत जनता के पास है।

तो अगली बार जब आपके घर की लाइट जाए, तो सिर्फ इन्वर्टर मत ऑन कीजिए — थोड़ा सवाल भी पूछिए।

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