
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना PGI क्षेत्र, तेलीबाग डिफेंस कॉलोनी में अब एक प्लॉट बना है “मान-सम्मान और वर्दी की टकराहट का अखाड़ा।”
मनोज कुमार, जो एक पूर्व सैनिक हैं, उनका आरोप है कि फतेहपुर में तैनात पुलिस इंस्पेक्टर राजेंद्र सिंह ने उनके प्लॉट पर जबरन कब्जा कर लिया है।
अब सवाल ये – “रक्षक ही जब भक्षक बन जाए तो नागरिक कहाँ जाए?”
फौजी बोले – ‘देश के लिए लड़ चुका हूं, अब अपने प्लॉट के लिए लड़ रहा हूं!’
फौजी मनोज कुमार का दावा है- “ये प्लॉट मेरा है, दस्तावेज मेरे नाम हैं। पुलिस वाला सिर्फ वर्दी का रौब दिखा कर कब्जा करना चाहता है।”
वहीं दूसरी तरफ, पुलिस इंस्पेक्टर राजेंद्र सिंह का रवैया…बिलकुल TV सीरियल वाला – “साबित कर दो कोर्ट में, फिर देखेंगे।”
पुलिस वाले की दबंगई vs फौजी की गुहार – Uniforms Clash, Justice Silent
जिस फौजी ने देश के लिए सीमाओं पर खड़ा होकर दुश्मनों से लड़ा, अब वो अपने ही देश में “प्लॉट के लिए पाव-पैदल कोर्ट और थाने के चक्कर” काट रहा है। सवाल ये नहीं कि जमीन किसकी है – सवाल ये है कि क्या एक फौजी की आवाज़ सिर्फ शहीद होने के बाद ही सुनी जाएगी?

सिस्टम का साइलेंट मोड: वर्दी के खिलाफ शिकायत? ‘Under Process’ में चला जाता है
इस पूरे विवाद में अब तक कोई भी अधिकारिक कार्रवाई नहीं हुई है। पीड़ित फौजी की शिकायतें कागज़ों में दबी हुई हैं, और आरोपी पुलिसकर्मी ‘ड्यूटी ऑन’ भी है और ‘प्लॉट ऑन’ भी। अब जनता पूछ रही है- “क्या उत्तर प्रदेश में इंसाफ पाने के लिए अब भी इंसाफ़ खरीदना पड़ता है?”
“प्लॉट लेने का नया तरीका – Uniform पहन लो, कब्जा कर लो!”
अगर आप VIP हैं, तो जमीन आपकी। अगर आप पुलिस में हैं, तो कोई कुछ नहीं बोलेगा। और अगर आप फौजी हैं? तो “थोड़ा रो लीजिए कैमरे के सामने।”
जब रक्षक खुद को असहाय महसूस करे – तब वर्दी की इज्ज़त किसे बचानी है?
ये घटना एक बार फिर सवाल उठाती है – क्या वर्दी का रौब न्याय से बड़ा हो चुका है?
क्या एक पूर्व सैनिक का सम्मान कागज़ी राष्ट्रवाद में ही सीमित है?
सरकार और प्रशासन से उम्मीद है कि **“फौजी बनाम पुलिस” का ये मामला फाइलों में नहीं, जमीन पर हल हो।
“तान्या को हुआ अमाल से प्यार या ये सिर्फ Footage का व्यापार?”