
केंद्रीय मंत्री और गोंडा से सांसद कीर्तिवर्धन सिंह ने अवध बारादरी के चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। उन्होंने बलरामपुर से प्रत्याशी जयेंद्र प्रताप सिंह को 130 वोटों के बड़े अंतर से हराकर संस्था के अध्यक्ष पद पर कब्ज़ा किया।
कीर्तिवर्धन को कुल 183 वोट, जयेंद्र को केवल 53 वोट मिले।
यह पद उनके पिता आनंद सिंह के निधन के बाद से खाली था, और अब उन्होंने उस विरासत को आगे बढ़ाया है — शब्दशः और सत्ता रूप में भी।
ये कोई आम संस्था नहीं — ये है “राजाओं की संसद”
165 साल पुरानी ‘अंजुमन-ए-हिंद’ संस्था के अंतर्गत आने वाली अवध बारादरी दरअसल एक ऐतिहासिक संस्था है।
इसमें मतदान करने वाले हैं:
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अवध के पूर्व राजपरिवारों के सदस्य
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तालुकेदार और पुराने जागीरदार
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कुल 322 मतदाता, जिन्होंने शाही अंदाज़ में लोकतांत्रिक चुनाव किया।
यह चुनाव सत्ता का नहीं, परंपरा और प्रतिष्ठा का संग्राम था — और कीर्तिवर्धन सिंह अब इस संग्राम के विजेता हैं।
उपाध्यक्ष पद पर भी शाही जीत
शिवगढ़ के राजा राकेश प्रताप सिंह को उपाध्यक्ष चुना गया है। यानी बारादरी में अब अनुभव और परंपरा का मेल दिखेगा — एक तरफ़ संसद और मंत्रालय की समझ, दूसरी तरफ़ रजवाड़ों की शाही नज़ाकत।
विरासत, वंश और वोट: सियासत के संग-संग संस्कृति भी
यह चुनाव केवल एक संगठनात्मक जिम्मेदारी का नहीं था, बल्कि एक संस्कृति की विरासत का भी प्रतीक है।
जहां राजा अब सीएम नहीं बनते, लेकिन परंपरा की गद्दी अभी भी सम्मानजनक मानी जाती है।
संसद से बारादरी तक, एक ही राजसी स्टाइल
कीर्तिवर्धन सिंह अब संसद में मंत्री और बारादरी में अध्यक्ष दोनों हैं। वो राजनीति में जनप्रतिनिधि हैं, और अब परंपरा में राजाओं के प्रतिनिधि भी।