
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में किडनी संक्रमण ने ऐसा कहर मचाया कि 22 दिनों में 7 बच्चों की जान चली गई। चार साल के विकास यदुवंशी की मौत नागपुर के अस्पताल में इलाज के दौरान हुई। मामला सिर्फ विकास तक सीमित नहीं है – दिघवानी गांव से लेकर कोयलांचल और तामिया के बच्चे संक्रमण की चपेट में हैं।
अब हालात ऐसे हैं कि स्वास्थ्य महकमा नींद से जागा है और कहा है – “जिन्हें बेहतर इलाज की जरूरत है, उन्हें नागपुर एम्स भेजो। और हां, एयर एम्बुलेंस भी भेज देंगे… क्योंकि जमीन पर तो हालात वैसे ही खराब हैं।”
ICMR, भोपाल और पुणे की ‘Super Combo टीम’
ICMR की टीम आई, नमूने लिए, पानी की बॉटलें भरीं और पुणे लैब की ओर रवाना हो गईं। उम्मीद की जा रही है कि रिपोर्ट आने के बाद ये साफ होगा कि बच्चों की किडनी ने इस्तीफा क्यों दिया।
भोपाल से भी एक और टीम ने पानी के नमूने लिए – क्योंकि अब शक पानी पर है। क्या दूषित पानी इस “Kidney Crisis” का असली विलेन है?
लक्षण दिखें तो Alert हो जाएं – ये कोई WhatsApp Forward नहीं
CMHO नरेश गुन्नाडे ने बताया कि शुरुआती लक्षण हैं:
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तेज बुखार
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पेशाब में दिक्कत
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कमजोरी
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उल्टी
मतलब अगर बच्चा कहे कि “पेशाब करने में जलन हो रही है”, तो समझ लीजिए – ये स्किन इरिटेशन नहीं, गंभीर बीमारी का संकेत हो सकता है।
Air Ambulance भी, लेकिन Filter वाला Water नहीं?
DM शैलेंद्र सिंह ने बताया कि ज़रूरत पड़ने पर पीएम श्री एयर एम्बुलेंस भेजेंगे। अच्छा है, लेकिन क्या गांवों में RO या फिल्टर भेजना ज़्यादा सस्ता और असरदार नहीं होता?
CM मोहन यादव खुद Line पर
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने खुद DM को फोन कर मामले पर सख्त निगरानी रखने और इलाज में कोई कसर न छोड़ने को कहा। जनता को तो अब यही उम्मीद है कि फोन कॉल सिर्फ बयानबाज़ी ना हो — कुछ रियल एक्शन भी दिखे।
छोटा सवाल, बड़ा सच: क्या पानी बना ज़हर?
जब एक ही इलाके से बच्चों की किडनी फेल होने लगे तो ये सिर्फ मेडिकल इमरजेंसी नहीं, सिस्टम पर बड़ा सवाल है। गांवों में पीने का पानी कौन सा है? किसने टेस्ट किया? सालों से ये कौन सी “Slow Poisoning” चल रही थी?
अभी भी छिंदवाड़ा और नागपुर के अस्पतालों में 7 बच्चों का इलाज जारी है। राहत की बात यह है कि वे फिलहाल खतरे से बाहर हैं। पर असली राहत तब होगी जब अगली पीढ़ी को ये बीमारी छू भी न पाए।
RO लगाओ, बयानों को नहीं, पानी को Filter करो!
छिंदवाड़ा की यह घटना सिर्फ मेडिकल इश्यू नहीं, ये सिस्टम की लापरवाही की कहानी है – जहां बच्चों की जान जाने के बाद ही जांच शुरू होती है। उम्मीद करें कि ICMR की रिपोर्ट के साथ जवाबदेही भी आए।
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