संदेशखाली में ‘लोकतंत्र’ का अपहरण, अब CBI लगाएगी न्याय की खोजबीन

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

9 जून 2019 को पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में जो हुआ, वो ‘गणतंत्र’ के नाम पर एक खूनी तमाशा था। भाजपा कार्यकर्ता प्रदीप मंडल, सुकांत मंडल और देवदास मंडल का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी गई। आरोप है कि भीड़ का नेतृत्व तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बाहुबली नेता शाहजहां शेख ने किया था।

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राज्य पुलिस ने क्या किया? (Spoiler: कुछ नहीं)

जांच शुरू तो हुई, लेकिन “खेला होबे” के नारे के बीच पुलिस ने जैसे ‘संदेह’ का पर्दा ओढ़ लिया। मुख्य आरोपी शाहजहां शेख का नाम चार्जशीट से चुपचाप गायब कर दिया गया — मानो गूगल सर्च से “Delete Forever” दबा दिया हो। हाईकोर्ट ने इसे “न्याय का अपमान” कहा।

कोर्ट ने सीबीआई को क्यों सौंपी जांच?

कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस जॉय सेनगुप्ता ने राज्य पुलिस की लापरवाही को देखते हुए कहा, “यह न्याय की घोर विफलता है… पुलिस की जांच अब भरोसे के काबिल नहीं रही।”

इसके बाद कोर्ट ने सीबीआई को मामला सौंपते हुए SIT (विशेष जांच दल) गठित करने का आदेश दिया, जिसकी निगरानी एक संयुक्त निदेशक करेंगे।

CBI का एक्शन: धाराएं भी गूंज उठीं

CBI ने सबसे गरम धाराएं इस्तेमाल की हैं — हत्या, अपहरण, दंगा फैलाना, सबूत मिटाना। अब 25 आरोपियों की नींद उड़ चुकी है, और शाहजहां शेख बन गए हैं “मोस्ट वांटेड बाहुबली ऑफ बंगाल”।

सियासत का साइड इफेक्ट: ममता सरकार पर घिरते बादल

भाजपा ने पूरे मामले को “राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय” बताया और ममता सरकार की “चुप्पी” पर निशाना साधा। विपक्ष राष्ट्रपति शासन की मांग तक करने लगा है। इधर, TMC नेताओं की प्रतिक्रिया कुछ यूं है, “हमें फंसाया जा रहा है, ये सब राजनीतिक बदले की भावना है!”

मतलब गाड़ी वही, बहाना नया।

‘शांति का पाठ’ पढ़ाने वाले खुद तांडव में शामिल?

जिस पार्टी ने बंगाल में ‘शांति रथ’ चलाने का सपना देखा था, उसके नेता अब “मर्डर ऑन द मेंनू” वाले केस में फंसे हैं। राज्य सरकार की पुलिस तो जैसे Netflix की बिंज-वॉचर निकली — सीन देखा, नोट किया और स्किप कर दिया।

लोकतंत्र बचाओ, जाँच भरोसेमंद बनाओ

अब देखने वाली बात होगी कि क्या CBI की जांच से उन तीन भाजपा कार्यकर्ताओं को इंसाफ मिलेगा, जिनके घरों में पिछले छह साल से सिर्फ इंतजार और आंसू पल रहे हैं। या फिर यह केस भी बंगाल की राजनीति की धूल में कहीं दब जाएगा।

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