कांवड़ बनाम कुरसी – दिग्विजय का “मौलाना मोमेंट”

सत्येन्द्र सिंह ठाकुर
सत्येन्द्र सिंह ठाकुर

सावन आते ही कांवड़ियों की सेना सड़कों पर, और नेताओं की जुबानें टीवी स्क्रीन पर उतर आती हैं। इस बार भी रिवाज़ टूटा नहीं – कांग्रेस के सीनियर नेता दिग्विजय सिंह ने कांवड़ यात्रा पर सवाल उठाते हुए ऐसा पोस्ट किया, कि खुद विश्वास सारंग के “संघी सेंसर्स” एक्टिवेट हो गए।

“आधा बिस्वा ज़मीन, फुल पॉलिटिक्स: छितौना से पूर्वांचल तक जाति की गर्मी”

“एक देश, दो कानून?” या दो कैमरे, दो कोण?

दिग्विजय सिंह ने जो पोस्ट शेयर की, उसमें एक तरफ कांवड़ सड़क पर विराजमान थी (सावन स्पेशल रोड ब्लॉक), और दूसरी तस्वीर में एक नमाजी पर पुलिस की लात-सेवा। ये तुलना देख सरकार के भक्तगणों का ‘सर्वर डाउन’ हो गया। मतलब, अब सड़कों पर कौन कितना बैठ सकता है – ये भी धर्म पूछ कर तय होगा?

‘मौलाना दिग्विजय सिंह’ – नामकरण संस्कार LIVE!

भाजपा नेता विश्वास सारंग ने कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने कहा – “दिग्विजय सिर्फ और सिर्फ सनातन विरोधी हैं। कभी भगवा आतंकवाद, कभी जाकिर नायक की प्रशंसा, कभी सेना पर सवाल – इनकी हर पोस्ट में टाइपो नहीं, तुष्टीकरण होता है।”

और फिर दिया उन्हें ‘मौलाना दिग्विजय सिंह’ का नया टाइटल – जो अब ट्रेंडिंग में है। कौन कहता है भारत में इस्लामोफोबिया नहीं है? यहां तो नेता अपने विरोधी का नाम बदलकर ही उनका सेक्युलर रिपोर्ट कार्ड जारी कर देते हैं!

कांवड़ यात्रा – श्रद्धा या शक्ति प्रदर्शन?

कांवड़ यात्रा एक पवित्र आस्था है, लेकिन जब सड़क पर जाम से ज्यादा तंबू और DJ दिखने लगे तो श्रद्धा कहीं पीछे छूट जाती है। सवाल यह नहीं कि कांवड़ यात्रा हो या नमाज – सवाल यह है कि क्या सड़क पर धार्मिक आयोजन की अनुमति धर्म देखकर तय होनी चाहिए?

वीडियो और वादों की राजनीति

दिग्विजय सिंह द्वारा शेयर की गई घटना दिल्ली की थी, जब नमाज के दौरान एक पुलिसकर्मी ने नमाजी को लात मारी। यह घटना कई मुस्लिम संगठनों की नाराज़गी का कारण बनी थी। लेकिन तब भी किसी मंत्री ने पुलिस के व्यवहार पर सवाल नहीं उठाया था, और आज वही मंत्री कांवड़ियों पर सवाल से आहत हैं। Selective outrage भी कोई श्रद्धा होती है शायद!

राजनीति का नया सावन— जहां पानी कम, बयान ज्यादा बहते हैं!

कांवड़ यात्रा अब आस्था नहीं, पॉलिटिकल हॉटस्पॉट बन चुकी है। एक ओर श्रद्धालु गंगाजल से शिव को भिगोते हैं, दूसरी ओर नेता बयानबाज़ी से देश का माहौल। अब सवाल ये नहीं कि दिग्विजय सही हैं या विश्वास – सवाल ये है कि आस्था की राजनीति में आखिर जनता को क्या मिलता है?

कांवड़ तो हर साल उठती है, लेकिन कब उठेगा वो वोटर – जो सड़क पर भीड़ के बीच ‘सिस्टम’ को तलाशता है?

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