कभी जंग थी पत्रकारिता, अब जिंगल है – लोकतंत्र का मज़ाक चल रहा है

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि)

कभी जो पत्रकारिता जनक्रांति की मशाल थी, वह आज खुद वेंटिलेटर पर पड़ी है। उसकी कलम सूख गई है, आवाज़ कांप रही है, और आत्मा… वह धीरे-धीरे सत्ता के चरणों में दम तोड़ रही है।

रिसॉर्ट नहीं था, शोषण का अड्डा था! अब उम्रभर जेल में काटेंगे दरिंदे

जिसने तानाशाही से लड़ा, वो अब खुद गुलाम है

जिस पत्रकारिता ने आज़ादी के आंदोलन में आग उगली थी, जिसने इमरजेंसी में बिना थके-बिना झुके सवाल किए थे, वही आज “वायरल वीडियो” और “सेलिब्रिटी ट्वीट्स” में उलझ कर रह गई है।

सत्ता की चाटुकारिता और कॉरपोरेट की दलाली, अब इसे “मीडिया रणनीति” कहा जाता है।

बिक गई खबर, बिक गया ज़मीर

“हेडलाइन” अब वो नहीं होती जो जनता को झकझोरे, बल्कि वो होती है जो पैसा झाड़ दे। अब खबरें नहीं, पैकेज बिकते हैं। विज्ञापन की भाषा में लिखा जाता है, संपादकीय नहीं—“ब्रांड स्टोरी”

पत्रकार अब माइकधारी सेल्समैन बन गए हैं, जो जनता को नहीं, बल्कि पॉलिटिकल PR को रिपोर्ट करते हैं।

मुद्दे गायब, मसाले हावी

  • किसान आत्महत्या? – कोई TRP नहीं।

  • बेरोजगारी? – टॉपिक बोरिंग है।

  • महँगाई? – अगले सेगमेंट में स्किन क्रीम का ऐड आना है।

लेकिन अगर किसी नेता की कार का टायर पंचर हो गया, तो बस… “Exclusive Breaking!”

डिजिटल दौड़ ने छीन ली आत्मा

आज हर कोई पत्रकार है, हर कोई “वायरल” का भूखा है। जांच पत्रकारिता अब एक यूट्यूब चैनल की “थंबनेल वार” बन गई है। सच? वो तो एल्गोरिद्म में फंसा पड़ा है।

“गोदी मीडिया” – पत्रकार नहीं, सरकारी भोंपू

जो संस्थान कभी सत्ता की पोल खोलते थे, अब सत्ता के इशारों पर “Breaking झुमका गिरा रे” चला रहे हैं। पत्रकार प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल नहीं पूछते, बस कैमरा सेट करते हैं कि “नेता जी चमकें ठीक से”

लेकिन अभी बुझी नहीं है ये चिंगारी

कुछ छोटे पोर्टल, निडर पत्रकार और ज़मीनी आवाज़ें अब भी हैं जो सत्ता की आँखों में आँखें डाल रही हैं। वे बिना PR पैकेज, बिना सुरक्षा कवच, सिर्फ सच के बल पर मैदान में खड़े हैं।

अब भी वक़्त है! पत्रकारिता को ICU से निकालिए

हिंदी पत्रकारिता को बचाना है तो…

  • उसे जनता की ज़ुबान बनाना होगा

  • उसे कॉरपोरेट के कागज़ नहीं, आम आदमी के आँसू पढ़ने होंगे

  • उसे सत्ता की गोदी से कूदकर जनता की गली में आना होगा

वरना अगली ब्रेकिंग न्यूज़ होगी –

“हिंदी पत्रकारिता का अंतिम संस्कार आज शाम 7 बजे।”

पत्रकारिता मरी नहीं है, वो कोमा में है। और उसे जगाने के लिए ज़रूरत है – निडर कलम की, ईमानदार सवालों की, और आपकी आवाज़ की।

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