ट्रंप का ‘फुल टाइम स्पीच’, ईरान का ‘फुल वॉल्यूम रिएक्शन’

सैफी हुसैन
सैफी हुसैन

मिडल ईस्ट में जब भी सुलह की बर्फ़ पिघलने लगती है, कोई ना कोई ज़रूर टांग अड़ा देता है। इस बार मंच पर थे – डोनाल्ड ट्रंप, जगह थी – इसराइली संसद, और ग़ुस्से में थे – ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची

ईरान इस बार वाकई भड़क गया है। ट्रंप ने इसराइली संसद में लगभग एक घंटे का भाषण देकर खुद को “शांति के दूत” घोषित कर दिया। लेकिन ईरान ने इस पर तंज कसते हुए कहा- “कोई व्यक्ति खुद को ‘शांति का राष्ट्रपति’ नहीं कह सकता जबकि वो युद्धों को उकसाता हो और युद्ध अपराधियों का साथ देता हो।”

मतलब साफ़ है – ट्रंप शांति का Nobel और युद्ध की नोटबंदी, दोनों एक साथ नहीं चला सकते।

ईरान बोला: “परमाणु हथियार? झूठ मत फैलाओ ट्रंप साहब!”

ट्रंप के भाषण में ये दावा किया गया कि ईरान इस वसंत तक परमाणु हथियार बना सकता था। इस पर ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराघची ने ट्वीट करते हुए कहा:

“यह एक बड़ा झूठ है। अमेरिका की अपनी खुफ़िया एजेंसियों ने भी पुष्टि की है कि इसका कोई सबूत नहीं है।”

यह बयान सुनकर CIA भी सोच रही होगी – “अब हमें बीच में क्यों घसीटा, भाई?”

“अमेरिका को भी धमकाते हैं ये” – ईरान का इसराइल पर निशाना

ट्रंप का भाषण तो हो गया, लेकिन ईरान ने इस मौके को भी खाली नहीं जाने दिया। अराघची ने कहा, “इसराइल सिर्फ मध्य पूर्व ही नहीं, अमेरिका को भी धमकाता है और उसका फ़ायदा उठाता है।”

यानि अब इसराइल ‘नंबर वन दबंग’ की कैटेगरी में डाल दिया गया है।

“बम गिराकर सुलह नहीं होती” – ईरान का लेक्चर ऑन पीस

अराघची ने पूछा, “ईरान की जनता कैसे भरोसा करे उन लोगों की सुलह पर, जिन्होंने चार महीने पहले ही ईरान पर बम गिराया?”

ट्रंप अगर वाकई ‘शांति दूत’ होते, तो शायद उनके पास गुलाब का गुलदस्ता होता, बम गिराने का बैकग्राउंड नहीं

ट्रंप के दो रूप – शांति और युद्ध? एक तो चुन लो सर!

“ट्रंप या तो शांति के राष्ट्रपति हो सकते हैं या युद्ध के। दोनों एक साथ नहीं।” – अब्बास अराघची

“नोबेल का ट्रंप कार्ड”: क्या ट्रंप वाकई शांति दूत हैं या अवॉर्ड के भूखे हैं?

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