सिंधु जल संधि RIP? अमित शाह का ‘सूखा-संदेश’, पाकिस्तान की जल-क्रांति

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कह दिया — सिंधु जल संधि अब फिर से बहने वाली नहीं, बल्कि नहर बना कर राजस्थान को तर करने वाली है। वहीं पाकिस्तान की प्रतिक्रिया… कुछ वैसी ही थी, जैसे कोई समोसे वाला बोले, “चटनी तो मेरी ही थी!”

ट्रंप-तालिबान: नोबेल शांति पुरस्कार के लिए सबसे मसालेदार जोड़ी

पानी अब नहीं जाएगा, बस आएगा — शाह का आत्मनिर्भर जल नीति

अमित शाह ने TOI को दिए इंटरव्यू में कहा कि पानी अब पाकिस्तान की ओर बहना बंद होगा। इसकी बजाय, उसे राजस्थान की प्यासी धरती की तरफ मोड़ा जाएगा। मतलब अब भारत सिर्फ राजनीति में ही नहीं, जल में भी आत्मनिर्भर भारत की राह पर है।

पाकिस्तान की जल-जवाबी डिप्लोमेसी: ये तो संधि है, स्वीमिंग पूल नहीं!

पाकिस्तान ने फौरन पानी के छींटे उछाले — और कहा कि सिंधु जल संधि कोई मूड-स्विंग वाला राजनीतिक समझौता नहीं, बल्कि पारंपरिक ‘इंटरनेशनल ट्रीटी’ है, जिसमें “एकतरफा नहर चालू” जैसी स्कीमें लागू नहीं होतीं।

इंटरनेशनल लॉ बनाम इंटेंस्टनल ठंडा पानी

पाकिस्तान का कहना है कि भारत की यह एकतरफा जल-नीति अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। उधर भारत ने अब तक ‘बंद टोंटी’ मोड में चुप्पी साधी है, लेकिन पंप तो चालू कर दिया है।

क्या राजस्थान अब पाकिस्तान से ‘पानी’ छीन लेगा?

यदि अमित शाह की बात मानें, तो वह पानी, जो दशकों से सीमा पार बहता था, अब राजस्थान की नहरों में डूबकी लगाएगा। सिंधु जल संधि के अनुच्छेद अब सिविल इंजीनियरिंग के नक्शों में बदले जा रहे हैं।

सच्चाई या राजनीतिक ट्रेलर?

सवाल यह है कि क्या भारत वास्तव में सिंधु जल संधि को स्थायी ठंडे बस्ते में डाल देगा, या यह सिर्फ पाकिस्तान को ‘पानी पी पी कर’ याद दिलाने का डिप्लोमैटिक तरीका है?

पानी पर सियासत की नई लहर

सिंधु जल संधि, जो 1960 से भारत-पाकिस्तान के बीच बह रही थी, अब राजनीतिक नलों में फंस गई है। भारत की ‘सूखा करो नीति’ और पाकिस्तान की ‘पानी दो पुकार’ के बीच, कूटनीतिक नमी और बयानबाज़ी दोनों ही उफान पर हैं।

खामेनेई ने तीन मौलवियों को उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया

Related posts