
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र में कुछ दिलचस्प “ऑयली बातें” हुईं। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अमेरिका के टैरिफों और दबावों पर ऐसा बयान दे दिया कि वॉशिंगटन में तो शायद कॉफी गिर गई हो!
जब एक पत्रकार ने पूछा कि क्या अमेरिकी सेकेंडरी प्रतिबंध भारत-रूस की इकोनॉमिक बॉन्डिंग में सेंध लगा सकते हैं, लावरोव बोले — “खतरे में नहीं है… भारत अपने पार्टनर्स खुद चुनता है। US को अगर दिक्कत है, तो बात कर ले।”
मतलब साफ है: दिल्ली जो करेगी, वही फाइनल है। और वॉशिंगटन? वो बस ट्वीट करता रह जाए!
तेल की धार और दोस्ती अपार
रूसी तेल को लेकर अमेरिका की टेंशन, अब कॉमन हो गई है। लेकिन भारत? वो तो अपने नेशनल इंटरेस्ट के हिसाब से चलता है। लावरोव ने भी माना कि मोदी सरकार की विदेश नीति ‘रिस्पेक्टेबल’ है।
उन्होंने यहां तक कह डाला — “हम नरेंद्र मोदी द्वारा अपनाई जा रही विदेश नीति का पूर्ण सम्मान करते हैं।”
अब बताइए, यूएन में ऐसा ओपन लव लेटर! कुछ तो बात है इस “विशेष रूप से विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” में।
क्या बोले लावरोव? (संक्षेप में)
भारत-रूस इकोनॉमिक पार्टनरशिप खतरे में नहीं है
भारत अपने साझेदार खुद चुनता है — अमेरिका से पूछने की ज़रूरत नहीं
मोदी जी की विदेश नीति का रूस को पूरा सम्मान है

दोनों देशों के बीच टॉप-लेवल पर लगातार संपर्क
SCO समिट में मोदी-पुतिन मुलाकात से घनिष्ठता और बढ़ी
“डियर यूएस, चिंता छोड़ो, ये दोस्ती नहीं टूटेगी!”
अमेरिका शायद सोच रहा था कि टैरिफ से भारत डगमगाएगा। लेकिन इंडिया ने क्या किया?
रशियन ऑयल खरीदा, और ऊपर से लावरोव से सर्टिफिकेट भी मिल गया कि “हमारी दोस्ती अटूट है।”
अब ये दोस्ती है या “तेल-मेल” — इसका फैसला आप करें।
भारत-रूस: कुछ रिश्ते पेट्रोल से भी ज्यादा स्थायी होते हैं
दुनिया बदली है, रिश्ते भी। लेकिन भारत और रूस की बॉन्डिंग वो VHS टेप जैसी है — पुरानी है, मगर अभी भी चलती है। लावरोव के बयान ने सिर्फ इस VHS को rewind किया है।
भारत की ‘मोदी डिप्लोमेसी’ ने फिर एक बार दिखा दिया कि दुनिया में वो अपनी शर्तों पर ही खेलेगा — चाहे अमेरिका नाराज़ हो या नहीं। और रूस? वो तो भारत का पुराना दोस्त है — जो ना सिर्फ तेल देता है, बल्कि तारीफ भी।