
भारत अब खनिजों को लेकर “मेक इन इंडिया” नहीं, बल्कि “माइन फॉर इंडिया” की ओर बढ़ रहा है। विदेश मंत्रालय के NEST विभाग के संयुक्त सचिव महावीर सिंघवी का बयान आया और लगा जैसे खनिजों की भी फॉरेन पॉलिसी बन गई है। चीन की ओर इशारा करते हुए उन्होंने साफ कहा – अब बहुत हो गया “चीनी चम्मच”, भारत अब खनिजों के लिए अर्जेंटीना-ऑस्ट्रेलिया की ओर रुख कर रहा है।
भारत क्यों बना चीन का खनिज ग्राहक?
भारत 100% लीथियम और कोबाल्ट के लिए चीन पर निर्भर, निकल और तांबा भी अधिकतर बाहर से आता है। चीन दुनिया के 90% रेयर अर्थ मिनरल्स को या तो खुद रखता है या उनका प्रोसेसिंग करता है। और भारत? खनिज जमीन में हैं, लेकिन प्लांट लगाने में प्लान ही नहीं है!
रेयर अर्थ मिनरल्स: जिन पर दुनिया की नज़रें टिकी हैं
रेयर अर्थ मिनरल्स वो हैं जिनसे ड्रोन उड़ते हैं, मिसाइल फूटते हैं और फोन चार्ज होते हैं।
इनमें शामिल हैं:
लैंथेनम, सेरियम, नियोडिमियम, समारियम, यूरोपियम, स्कैन्डियम, यिट्रियम आदि। इन्हें “रेयर” कहा जाता है, लेकिन मज़े की बात ये है कि ये धरती में हैं बहुतायत में। मुश्किल है इनका निकालना और साफ करना — बिल्कुल राजनीति की तरह।
तो भारत क्या कर रहा है?
“आत्मनिर्भर भारत” के तहत अब खनिज भी कह रहे हैं – Made in India please!
भारत ने अर्जेंटीना से समझौता किया है, ताकि लीथियम सीधे वहां से लाया जा सके, चीनी चक्कर में न पड़ना पड़े। राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) बना दिया गया है। खनिज अधिनियम में 2023 में संशोधन भी कर दिया गया। भारत अब ऑस्ट्रेलिया, चिली, ब्राजील जैसे देशों को डेट कर रहा है — पुराने रिश्ते में अब स्पार्क नहीं रहा।
विदेश नीति या खनिज नीति? फर्क समझना मुश्किल है
सिंघवी बोले: “ये सिर्फ कमर्शियल डील नहीं हैं, ये रणनीतिक कदम हैं”
सीधा सा मतलब — अगर चीन कल ‘नो एक्सपोर्ट’ कह दे, तो भारत का मोबाइल बंद हो जाएगा, कारें रुक जाएंगी और मिसाइल तो… चलिए छोड़िए।

प्रोसेसिंग की भी भारी समस्या!
खजाना ज़मीन के नीचे है, लेकिन उसे निकालने और प्रोसेस करने वाली टेक्नोलॉजी चीन के पास है। भारत में रिसोर्स हैं, लेकिन प्रोसेसिंग प्लांट ऐसे हैं जैसे सरकारी वाई-फाई – हैं भी और नहीं भी।
एक देश पर निर्भरता = रणनीतिक खतरा
चीन से लीथियम मंगाते रहो और अगर कल को ड्रोन या इलेक्ट्रिक कार की बैटरी रुक जाए तो? इसलिए भारत अब “मल्टी-सोर्सिंग” के रास्ते पर है – जैसे मम्मी कई दुकान से सब्जी खरीदती हैं, ताकि किसी एक पर डिपेंड न रहें।
दुनिया में होड़ क्यों मची है रेयर अर्थ को लेकर?
स्मार्टफोन, लैपटॉप, EV कारें, टीवी, सोलर पैनल, विंड टरबाइन, मिसाइल, रडार, डिफेंस टेक यानी कल का भविष्य, इन 17 खनिजों के हाथ में है।
अब आगे क्या?
भारत ने तो संकेत दे दिए हैं — “हम अब केवल चीन पर नहीं टिकलेंगे।” बात सिर्फ व्यापार की नहीं, भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक आज़ादी की है।
भारत अब खनिजों को भी “दूसरे ऑप्शन” की तलाश में डाल रहा है। और चीन? वो शायद सोच रहा होगा – “इतने सालों की दोस्ती और अब अर्जेंटीना?”
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