पाक नहीं, असली खिलाड़ी तो चीन है! कब तक साइड विलेन से लड़ते रहेंगे?

सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक
सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक

भाई साहब, ये बात तो अब चाय वाले स्टॉल से लेकर थिंक टैंक के हॉल तक सब मानते हैं — पाकिस्तान जो कुछ करता है, उसकी रिमोट कंट्रोलिंग बीजिंग से होती है। फिर भी हमारे नीति-निर्माता सालों से इस छोटे विलेन से उलझे हुए हैं।

पाकिस्तान: स्क्रिप्ट का साइड विलेन, डायरेक्टर तो चीन है!

हर बार जब पाकिस्तान कोई हरकत करता है — LOC पर फायरिंग, आतंकी घुसपैठ या फिर डिप्लोमैटिक नौटंकी — तो वो असल में अपने “बड़े भाई” चीन के इशारे पर ही करता है। पाकिस्तान तो बस वो दुकान है, जिसकी इन्वेंटरी चीन से आती है।

“डॉक्टर को छोड़, कंपाउंडर से झगड़ा!”

भारत की पॉलिसी कुछ ऐसी रही है जैसे कोई बुखार में सिर्फ ठंडे पानी से पट्टी करता रहे, पर वायरस की जड़ को न मारे। यानि चीन की लॉन्ग टर्म स्ट्रैटेजी को नजरअंदाज कर बस पाकिस्तान को डांटना।

“अरे भाई, चीन की कमर तोड़ो… पाकिस्तान अपने आप ICU में चला जाएगा!”

पैसों का प्लान: CPEC से लेकर चाय तक

चीन ने पाकिस्तान में इतना इन्वेस्ट किया है कि अब वहां की इकोनॉमी भी Beijing-Interest Based Economy बन गई है। और जब तक ये इन्वेस्टमेंट चलता रहेगा, पाकिस्तान को “हिम्मत और हथियार” दोनों मिलते रहेंगे।

भारत की चुप्पी: रणनीति या आराम?

क्या भारत जानबूझकर चीन से सीधा टकराव नहीं ले रहा, या फिर ये कोई Under-the-Table शांति समझौता है? क्योंकि एक तरफ गलवान होता है, दूसरी तरफ ट्रेड चलता रहता है। एक तरफ “बॉयकॉट चाइना” ट्रेंड करता है, दूसरी तरफ चीनी मोबाइल नंबर वन रहते हैं।

असली इलाज करो, लक्षण खुद ठीक हो जाएंगे

पाकिस्तान सिर्फ लक्षण है, बीमारी चीन है। जब तक भारत चीन को स्ट्रैटेजिकली टारगेट नहीं करेगा — टेक्नोलॉजी, इकोनॉमी, डिप्लोमेसी हर मोर्चे पर — तब तक पाकिस्तान की नौटंकी बंद नहीं होगी।

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