
6 अगस्त 1945, तारीख़ जो दुनिया के इतिहास में सिर्फ़ एक शहर की तबाही नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की चेतावनी बनकर दर्ज है। हिरोशिमा पर अमेरिका द्वारा गिराया गया परमाणु बम “लिटिल बॉय” और उसके तीन दिन बाद नागासाकी पर “फैट मैन”— दो ऐसे कोडनेम जिनका असर आज भी महसूस होता है।
लिटिल बॉय: एक पतले बम ने मोटा नुक़सान किया
लिटिल बॉय, नाम छोटा था लेकिन असर विनाशकारी।
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गिराया गया: 6 अगस्त 1945
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विमान: Enola Gay (B-29 बॉम्बर)
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फ्यूल: यूरेनियम-235
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वजन: लगभग 4 टन
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तत्काल मौतें: करीब 70,000
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असर: 70% हिरोशिमा तबाह, स्कूल, अस्पताल, बाज़ार—सब खाक
यह बम कोई हथियार नहीं, मानवता पर किया गया रेडिएशन भरा सवाल था।
फैट मैन: गोल दिखा, लेकिन सीधा दिल में लगा
9 अगस्त 1945, नागासाकी के ऊपर आसमान से गिरा फैट मैन।
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फ्यूल: प्लूटोनियम-239
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कोडनेम: आकार के कारण
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तात्कालिक मौतें: लगभग 40,000
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नागासाकी का पहाड़ी इलाका, लेकिन तबाही असीम
“छोटे बॉय ने शुरुआत की, फैट मैन ने अंत तय कर दिया।”
इन नामों के पीछे की मनोवैज्ञानिक रणनीति
अमेरिका चाहता था कि जापान बिना शर्त आत्मसमर्पण करे। लिटिल बॉय और फैट मैन के नाम मजाक जैसे लगते हैं, लेकिन असल में ये डिजाइन आधारित कोडनेम थे:
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लिटिल बॉय: लंबा, पतला
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फैट मैन: मोटा, गोल
यह सैन्य ताकत नहीं, दिमाग़ी खेल था।
जापान ने क्यों टेके घुटने?
इन दो हमलों के बाद 15 अगस्त 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया। ये सिर्फ़ एक देश की हार नहीं थी, बल्कि युद्ध की संस्कृति का अंत और शांति की शुरुआत थी।
“शुरू हुआ था बम से, खत्म हुआ किताबों से।”
आज जापान दुनिया का तकनीकी पावरहाउस है, क्योंकि उन्होंने युद्ध की राख से शिक्षा, विज्ञान और मानवता को अपनाया।
क्या सीखा दुनिया ने?
हिरोशिमा और नागासाकी सिर्फ अतीत की घटनाएं नहीं हैं, ये याद दिलाते हैं कि शक्ति का संतुलन नहीं होगा, तो विनाश तय है।
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युद्ध कभी समाधान नहीं होता
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शांति ही असली प्रगति है
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हिरोशिमा दिवस हर साल हमें चेतावनी देता है: “Never Again”
लिटिल बॉय और फैट मैन सिर्फ बम नहीं थे, ये मानवता की परीक्षा थे। उन्होंने दिखा दिया कि विज्ञान अगर नियंत्रण से बाहर हो, तो सभ्यता खुद को नष्ट कर सकती है।
“अब सवाल ये नहीं कि हमारे पास ताकत है या नहीं, सवाल ये है कि हम उसका इस्तेमाल कैसे करते हैं।”
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