“हार्ट का ऑपरेशन, डिग्री फर्जी!” — डॉक्टर निकला सिस्टम से भी चालाक

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

हरियाणा के फरीदाबाद में जो मामला सामने आया है, वो सिर्फ एक फर्जी डॉक्टर की चालाकी नहीं, बल्कि पूरे मेडिकल सिस्टम के लिए शर्मनाक तमाचा है। एक MBBS डॉक्टर, डॉ. पंकज मोहन शर्मा, ने खुद को कार्डियोलॉजिस्ट बताकर बीके अस्पताल में 8 महीनों तक 50 से ज्यादा हार्ट सर्जरी कर डाली।

जब नकली डिग्री बनी ‘सर्जरी का पासपोर्ट’

हालांकि आरोपी के पास MBBS की डिग्री थी, मगर उसने DNB (कार्डियोलॉजी) जैसी स्पेशलिस्ट डिग्री के फर्जी दस्तावेज बना रखे थे। उसने एक असली डॉक्टर के नाम और NMC रजिस्ट्रेशन नंबर का इस्तेमाल कर खुद को कार्डियोलॉजिस्ट साबित कर दिया। डिग्री नकली, पहचान चोरी की, लेकिन सिस्टम सोयाहा!

ऐसे खुला मेडिकल महाघोटाले का राज़

पूरा मामला तब सामने आया जब सामाजिक कार्यकर्ता संजय गुप्ता ने पुलिस में शिकायत की। संदेह के घेरे में आए डॉ. शर्मा की पहचान और दस्तावेजों की जांच हुई तो पता चला कि

  • उसने दूसरे डॉक्टर के रजिस्ट्रेशन नंबर का दुरुपयोग किया।

  • असली डॉ. पंकज मोहन को इस मामले की भनक तक नहीं थी।

  • जब अस्पताल ने मेडिकल डिग्री मांगी, तो वह फरवरी में अचानक लापता हो गया

सिस्टम फेल: कैसे एक फर्जी डॉक्टर अस्पताल में काम कर रहा था?

अस्पताल की लापरवाही

मेडिटेरीना अस्पताल, जो पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत बीके सिविल अस्पताल में हार्ट सेंटर चला रहा है, उसने बिना सही वैरिफिकेशन के डॉ. शर्मा को नियुक्त किया।

रजिस्ट्रेशन नंबर का वेरिफिकेशन नहीं

एनएमसी जैसे निगरानी संस्थानों का ढांचा इतना लचर है कि असली-नकली डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन नंबर तक की जांच नहीं हो सकी।

 फर्जी डॉक्यूमेंट्स की आसान एंट्री

भारत में आज भी डिजिटल वेरिफिकेशन प्रणाली कमजोर है। डॉक्यूमेंट नकली हों या असली, दिखने भर से काम हो जाता है।

मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़

ये सिर्फ धोखाधड़ी नहीं, बल्कि मानवता के खिलाफ अपराध है। 50 से ज्यादा मरीजों के दिलों की सर्जरी बिना प्रमाणिक योग्यता वाले व्यक्ति ने की। सोचिए, इनमें से किसी की जान चली जाती तो? कौन जिम्मेदार होता?

भारत में अकेला मामला नहीं: मध्यप्रदेश में 7 मौतें

ऐसे ही एक मामले में मध्यप्रदेश के एक मिशनरी अस्पताल में फर्जी ब्रिटिश कार्डियोलॉजिस्ट के नाम पर काम कर रहे डॉक्टर ने 7 मरीजों की जान ले ली। बाद में पता चला कि उसका असली नाम नरेंद्र विक्रमादित्य यादव था।

अब सवाल उठता है:

  • क्या डॉक्टरों की नियुक्ति से पहले डिग्री का डिजिटल सत्यापन नहीं होना चाहिए?

  • NMC और अस्पताल प्रशासन की लापरवाही पर कौन कार्रवाई करेगा?

  • क्या जिन मरीजों की सर्जरी इस फर्जी डॉक्टर ने की, उन्हें कानूनी सहायता और मुआवज़ा मिलेगा?

सिस्टम को ICU में भेजने की ज़रूरत

डॉ. शर्मा जैसे धोखेबाज़ केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक ट्रेंड बन चुके हैं — और यह ट्रेंड सिस्टम की चूक से पैदा हुआ है। अगर अब भी अस्पताल, रजिस्ट्रेशन बोर्ड और सरकार नहीं जागे, तो अगली बार ये खेल आपके अपने घर के किसी मरीज के साथ हो सकता है।

Related posts