रेट्रो रिव्यू गाइड: देव और वहीदा ने प्यार, मोक्ष और समाज से दो-दो हाथ किए

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

अगर आपने “आज फिर जीने की तमन्ना है” कभी गुनगुनाया है, तो इस फ़िल्म के बारे में जानना आपके जीवन के लिए उतना ही ज़रूरी है जितना इंस्टाग्राम पर “वहाँ कौन है तेरा” वाला ट्रेंड।

देव आनंद और वहीदा रहमान अभिनीत गाइड (1965) कोई साधारण प्रेम कहानी नहीं, ये आत्मा की खोज, समाज की धूल झाड़ने, और इंसान की अधूरी इच्छाओं का महाकाव्य है।

उपन्यास से स्क्रीन तक – आर.के. नारायण की आत्मा और विजय आनंद का कैमरा

फ़िल्म आर के नारायण के उपन्यास “द गाइड” पर आधारित है, लेकिन चुटकी भर फ़िल्मी नमक और सस्पेंस डालकर इसे ऐसा बनाया गया है कि दर्शक चाहे मारवाड़ी हो या मेट्रो सिटी का, सब झूम उठें।

उपन्यास का गाइड: गुमनाम अंत।
फ़िल्म का गाइड: अकाल में मोक्ष प्राप्त करता एक सेलिब्रिटी साधु।

राजू गाइड: जेल की सलाखों से पीताम्बर तक की कथा

देव आनंद का किरदार राजू, जो पहले लोगों को क़िले घुमाता है और बाद में खुद इतिहास बन जाता है। मार्को का गुस्सा, रोज़ी का नृत्य, समाज की गालियाँ, और अंत में भूख से आत्मा की तृप्ति—राजू हर रंग में रंगा गया है।

रोज़ी उर्फ मिस नलिनी: समाज को नचाने वाली नृत्यांगना

वहीदा रहमान ने रोज़ी के रूप में उस औरत को जिया जिसे वेश्या समझा गया, लेकिन जिसने पूरी इंडस्ट्री को पैर पटक-पटककर अपना बना लिया।

रोज़ी की सफलता ने राजू के आत्मविश्वास को हिला दिया और मार्को के बाय-बाय ने कहानी को मोड़ दिया।

स्वामी राजू: समाज को गाइड करते-करते खुद हो गया ‘गाइडेड’

गांव वालों की ग़लतफ़हमी राजू के आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत बनती है। जब तक वो समझ पाता कि ‘उपवास’ एक अफ़वाह है, तब तक वो ‘संत’ बन चुका होता है।

डायलॉग जो सदी के लिए अमर हुआ:
“इंसानियत ही मेरा धर्म है।”

संगीत: बर्मन दा ने रच दिए आत्मा के स्वर

  • “पिया तोसे नैना लागे रे” – शुद्ध कथक प्रेम

  • “वहाँ कौन है तेरा” – अकेलेपन की कविता

  • “आज फिर जीने की तमन्ना है” – फ्रीडम एंथम

एस.डी. बर्मन के संगीत ने फ़िल्म को कालजयी बना दिया।

पुरस्कारों की झड़ी, और आलोचकों की तालियाँ

फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड्स:

  • सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, अभिनेता (देव आनंद), अभिनेत्री (वहीदा रहमान), निर्देशक (विजय आनंद) समेत 7 पुरस्कार

राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार:

  • तीसरी सर्वश्रेष्ठ फ़ीचर फ़िल्म (हिंदी)

“राजू गाइड था या GPS से पहले का गूगल?”

एक वक्त था जब राजू टूरिस्ट गाइड था, और एक वक्त आया जब पूरे गांव का आध्यात्मिक नेविगेटर बन गया।

मार्को गुफाओं में खो गया, रोज़ी मंच पर नाच गई, और राजू जेल से निकलकर मंदिर में टिक गया।

अब बोलो—सिनेमा है या जीवन का आईना?

गाइड सिर्फ फिल्म नहीं, जीवन की व्याकरण है

गाइड देखने के बाद समझ आता है कि:

  • प्रेम में त्याग जरूरी है

  • सफलता अकेलेपन की गारंटी है

  • और कभी-कभी झूठ भी आपको संत बना सकता है (मगर जान की क़ीमत पर!)

भारी बारिश का अलर्ट, मज़ा लेने निकले आशिकों के लिए खतरे की घंटी

अगर आप इस फ़िल्म को अब तक नहीं देख पाए, तो अगली बार जब कोई दोस्त Netflix खोलते हुए पूछे “क्या देखें?” — तो बस कह देना: “गाइड देख लो, रास्ता खुद मिल जाएगा!”

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