
हर साल 21 जून को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस अब एक वैश्विक परंपरा बन चुका है। इस वर्ष भी देश-विदेश में एक लाख से अधिक स्थानों पर आयोजन हो रहे हैं। भारत में योग दिवस के आयोजन न सिर्फ एक स्वास्थ्य अभियान हैं, बल्कि हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति गौरव का भी प्रतीक हैं।
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प्राचीन ग्रंथों से आधुनिक जनजीवन तक
योग का उल्लेख वेदों, उपनिषदों, गीता, महाभारत, रामायण और शिव संहिता जैसे ग्रंथों में मिलता है। लेकिन सदियों तक यह साधना सिर्फ गुफाओं और आश्रमों तक सीमित रही। इस महान विद्या को जनसामान्य के लिए सुलभ बनाने का श्रेय जिन महापुरुषों को जाता है, उनमें गुरु गोरखनाथ सर्वोपरि हैं।
गुरु गोरखनाथ: योग को लोक से जोड़ने वाले पथप्रदर्शक
महर्षि पतंजलि ने योग को वैज्ञानिक पद्धति दी, लेकिन गोरखनाथ ने उसे जनकल्याण और आत्मिक उन्नति का माध्यम बनाया। उन्होंने योग को जीवन का अंग बनाते हुए यह सिद्ध किया कि यह गृहस्थ हो या संन्यासी, स्त्री हो या पुरुष—योग सभी के लिए है।
नाथ संप्रदाय और गोरखनाथ की परंपरा
नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति आदिनाथ शिव से मानी जाती है। मत्स्येंद्रनाथ से योग की परंपरा गोरखनाथ तक पहुंची। ऐसा माना जाता है कि गोरखनाथ ने तिब्बत, मंगोलिया, अफगानिस्तान, कंधार और श्रीलंका तक योग का प्रचार किया। उन्होंने योग को एक समग्र जीवनशैली में परिवर्तित किया।
योग का उद्देश्य: चित्त की स्थिरता और आत्मा की शुद्धि
गोरखनाथ के अनुसार, “ज्ञान सबसे बड़ा गुरु और चित्त सबसे बड़ा चेला है।” उनका योग मार्ग केवल आसनों या प्राणायाम तक सीमित नहीं था, बल्कि वह अंतर्मुखी साधना, नैतिक आचरण और आत्मिक विकास पर बल देते थे। उनके अनुसार योग वह साधन है जिससे आत्मा शिव में प्रतिष्ठित होती है।
योग का दरवाजा सबके लिए खुला
विद्वान एल.पी. टेशीटरी के अनुसार, गोरखनाथ का योग किसी धार्मिक सीमा में बंधा नहीं है। उन्होंने योग को वामाचार की चरम सीमाओं से निकालकर उसे सात्विकता, सद्विचार और संतुलन का माध्यम बनाया। उनके योग दर्शन में मुक्ति, स्वास्थ्य और मानवता की सेवा सभी का समावेश था।
योग साहित्य में गोरखनाथ का योगदान
गुरु गोरखनाथ ने संस्कृत और लोकभाषा में कई अमूल्य ग्रंथ लिखे, जिनमें प्रमुख हैं:
गोरक्षशतक, योगमार्तंड, ज्ञानप्रकाश, योगसिद्धांतपद्धति, हठयोग संहिता, गोरखगीता, और अमनस्क योग। ये ग्रंथ आज भी योग की साधना में गहराई तक मार्गदर्शन देते हैं।
गोरक्षपीठ: योग परंपरा का जीवंत केंद्र
गोरखनाथ की परंपरा को गोरक्षपीठ ने आज तक जीवित रखा है। यहां महायोगी गोरखनाथ संस्थान के प्रशिक्षित योगाचार्य लोगों को व्यावहारिक और शास्त्रीय योग शिक्षा देते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं इस पीठ के पीठाधीश्वर हैं और उन्होंने ‘हठयोग: स्वरूप एवं साधना’ जैसी पुस्तक के माध्यम से योग की गहराइयों को उजागर किया है।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर गोरक्षपीठ में साप्ताहिक शिविर
हर साल की तरह इस वर्ष भी गोरक्षपीठ में 15 जून से योग शिविर आरंभ हो चुका है। सुबह-शाम योगाभ्यास और दोपहर में विशेषज्ञों के व्याख्यानों के माध्यम से योग, आयुर्वेद और राष्ट्रीय चेतना के विषयों पर संवाद जारी है। यह आयोजन 21 जून तक चलेगा।
योग मानवता का वरदान, गोरखनाथ उसका लोक-सेतु
आज जब पूरी दुनिया योग को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्वीकार कर चुकी है, तब यह जानना जरूरी है कि इसे आध्यात्मिक साधना से जनकल्याण के औजार में बदलने वाले गुरु गोरखनाथ ही थे। उनकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं जितनी तब थीं।