
जिस घड़ी का लोगों को महीनों से इंतज़ार था — युद्धविराम और बंधकों की रिहाई का समझौता, वो जैसे ही घोषित हुआ, ग़ज़ा की सड़कों पर उम्मीद की हल्की सी रौशनी दिखी। लेकिन यह उम्मीद ज़्यादा देर नहीं टिकी। अब वहां की हवा में ख़ुशी से ज़्यादा उलझन और डर है।
इसराइली सेना की वापसी… लेकिन पूरी नहीं
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक़, इसराइली सैनिकों ने ग़ज़ा सिटी के उत्तर-पश्चिमी बाहरी इलाक़ों से आंशिक वापसी शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि वे “येलो लाइन” नामक एक सीमित क्षेत्र तक पीछे हटे हैं।
हालांकि समझौते के मुताबिक जिन इलाक़ों से सेना को हटना था, वहां अब भी बख़्तरबंद टैंक और भारी हथियारों की मौजूदगी बनी हुई है — ख़ासकर ख़ान यूनिस और तटीय इलाकों में।
युद्धविराम के बीच भी गोलियों की गूंज
राशिद स्ट्रीट से घर लौटने की कोशिश कर रहे विस्थापितों को गोलाबारी का सामना करना पड़ा। स्थानीय लोगों ने बताया कि शुक्रवार सुबह टैंकों से फायरिंग हुई ताकि लोग उत्तर की ओर अपने घरों की तरफ़ न जा सकें।
यानी कागज़ पर शांति है, लेकिन ज़मीन पर डर और धमाके अभी भी जिंदा हैं।
कब लागू होगा युद्धविराम? लोग अब भी असमंजस में
ग़ज़ा के कई इलाक़ों में लोगों को अब भी नहीं पता कि युद्धविराम कब से औपचारिक तौर पर लागू होगा। कुछ हिस्सों में शुक्रवार को भी धमाकों की आवाजें सुनाई दीं, जिससे नागरिकों में डर और भ्रम बढ़ता जा रहा है।

“घोषणा तो हुई है, लेकिन क्या हम सच में सुरक्षित हैं?” — एक स्थानीय निवासी ने बीबीसी को बताया।
विस्थापितों की घर वापसी: अब भी एक सपना
लाखों लोग जो युद्ध के चलते शरणार्थी कैंपों में जी रहे हैं, अब भी अपने घरों की ओर लौटने से डर रहे हैं। क्योंकि जब टैंक रास्ता रोकें, तो समझौते की स्याही भी बेअसर लगती है।
इसराइल और हमास के बीच शब्दों में शांति जरूर दिख रही है, लेकिन ग़ज़ा की ज़मीन पर गोलियों की गूंज और लोगों की नफ़रत से भरी आँखें अब भी शांत नहीं हुईं। जब तक वाकई में सेना पूरी तरह पीछे नहीं हटती, और नागरिकों की घर वापसी सुरक्षित नहीं होती, तब तक यह युद्धविराम सिर्फ एक “Pause” बटन ही रहेगा — “Stop” नहीं।
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