
पूर्वोत्तर भारत एक बार फिर पानी में डूबा है — न सिर्फ ज़मीन, बल्कि चिंता, दहशत और परेशानी भी इस बार गले-गले तक है। सिक्किम से लेकर मणिपुर और मेघालय तक बाढ़ ने तबाही मचा रखी है, और राहत के नाम पर बस उम्मीद की नाव बह रही है।
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34 मौतें, हज़ारों बेघर – आंकड़े नहीं, असली ज़िंदगियाँ हैं
34 लोगों की मौत हो चुकी है। ये सिर्फ गिनती नहीं, बल्कि हर एक आंकड़ा एक अधूरी कहानी है — किसी का खोया हुआ परिवार, किसी का बर्बाद हुआ घर।
सिक्किम: टूरिज़्म से ट्रैप तक
सिक्किम जो आमतौर पर अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है, आज वहां हज़ारों टूरिस्ट बाढ़ में फंसे हुए हैं। होटल अब पनाहगाह नहीं, पानी के कटघरे बन चुके हैं।
मेघालय: बारिश के साथ फौज की एंट्री
मेघालय में सेना के बचाव दल मैदान में हैं। यहां 500 से ज़्यादा लोग फंसे हुए हैं, और सेना अब छाता नहीं, सहारा बन चुकी है। हेलिकॉप्टर से राहत सामग्री गिराई जा रही है — आसमान से उम्मीद बरस रही है।
मणिपुर: जहां घर बहे, मगर हौसला टिका
56 हज़ार लोग प्रभावित हैं, और 10 हज़ार से ज़्यादा मकान ध्वस्त। पानी तो बहा ले गया सब कुछ, लेकिन राहत टीमें अब उम्मीद का बाँध बना रही हैं।
मणिपुर फायर सर्विस, असम राइफल्स, SDRF और NDRF की टीमें चौबीसों घंटे राहत कार्य में जुटी हैं।
प्रशासन की चुनौती: पानी कम नहीं, पर प्रयास जारी
हालांकि बारिश थमने का नाम नहीं ले रही, मगर प्रशासन और बचाव एजेंसियाँ हार मानने के मूड में नहीं हैं। नावों, ट्रकों, हेलिकॉप्टरों और पैदल जवानों के सहारे राहत पहुंचाई जा रही है।
मौसम की मार के आगे मानवता की दीवार
ये बाढ़ सिर्फ पानी की नहीं, नीतियों की लीक भी उजागर कर रही है। हर साल आने वाली आपदाएँ क्या अब स्थायी मेहमान बन चुकी हैं?
फिलहाल सवाल बहुत हैं, जवाब कम — मगर उम्मीद यही है कि इस बार इंसानियत फिर जीत जाएगी।