
बुधवार को दमिश्क स्थित रक्षा मंत्रालय और दक्षिणी सीरिया के इलाकों में इसराइली वायुसेना ने जोरदार हमला बोला। इजरायली पीएम बिन्यामिन नेतन्याहू ने बयान जारी कर कहा, “हम अपने ड्रूज़ भाइयों को बचाने और सीरिया में हथियारबंद गिरोहों को खत्म करने के लिए काम कर रहे हैं।”
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इस बयान से स्पष्ट है कि यह हमला सिर्फ सैन्य रणनीति नहीं, बल्कि राजनीतिक और सांप्रदायिक संदेश भी है।
ड्रूज़ प्रांत में लगातार चौथे दिन हिंसा
दक्षिण सीरिया में ड्रूज़ और बद्दू आदिवासी गुटों के बीच भयानक संघर्ष जारी है। स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार अब तक करीब 300 लोगों की जान जा चुकी है।
सीरियाई विदेश मंत्रालय ने इसराइल के हमले को “धोखेबाज़ी से की गई आक्रामकता” बताया है। मतलब साफ है: हमला एकतरफा और बिना चेतावनी के हुआ।
अमेरिका की चिंता और हस्तक्षेप
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा:
“हम इस भयावह स्थिति को लेकर गंभीर हैं। हमने कुछ ख़ास क़दमों पर सहमति बनाई है जो आज रात हालात बदल सकते हैं।”
कूटनीति की भाषा में इसका मतलब हुआ – अमेरिका ने बैकचैनल टॉक शुरू कर दिए हैं और अब “Situation Room” गर्म हो चुका है।
सीरिया का बयान: बातचीत के लिए दरवाज़ा खुला
सीरियाई सरकार ने अमेरिका के शांति प्रयासों का स्वागत किया है। लेकिन ज़मीन पर हालात इतने तनावपूर्ण हैं कि “शांति” अभी दूर की कौड़ी लग रही है।
इसराइल की ओर से अमेरिकी बयान या सीरियाई प्रतिक्रिया पर अभी तक कोई ऑफिशियल कमेंट नहीं आया है।
क्या मतलब निकाला जाए?
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इसराइल अब खुलकर सांप्रदायिक सुरक्षा के नाम पर सीमापार ऑपरेशन कर रहा है।
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सीरिया के अंदरूनी संघर्ष को बाहरी ताकतें राजनीतिक लाभ में बदलने की कोशिश कर रही हैं।
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अमेरिका एक ओर शांति दूत बना हुआ है, दूसरी ओर स्ट्रैटेजिक हितों की गहरी गणना कर रहा है।
सीरिया में यह नया अध्याय सिर्फ बमबारी और बॉर्डर क्रॉसिंग नहीं है, यह एक बड़ा भू-राजनीतिक शतरंज बनता जा रहा है, जिसमें हर मोहरा धर्म, संप्रभुता और सत्ता का प्रतीक है।
और ड्रूज़ समुदाय?
वो फिलहाल इस पूरे खेल में ‘प्यादे’ बनकर कुर्बानी दे रहा है।
दिग्विजय सिंह बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं -लगता तो ऐसा ही है!