
बचपन में जब स्कूल में सब खड़े होकर यही बोलते थे, तब भी हमें अंदाज़ा नहीं था कि ये लाइन आने वाले सालों में करियर की पहली शर्त बन जाएगी। अब भले ही आप ‘संविधान’ से प्रेम करते हों, लेकिन अगर इंटरव्यू में आपने “आई एम पैशनेट अबाउट डिस रोल” ना बोला, तो HR आपको रिजेक्ट कर देगा।
क्यों भैया? क्या “मैं इस काम को पूरी निष्ठा से करना चाहता हूँ” में कम ओज है?
भारत-पाक में लगे गले, ईरान-इजरायल में क्यों जल रही दाढ़ी ट्रंप जी?
चाइना-रशिया-जापान: जिन्होंने अपनी भाषा को छोड़ा नहीं, अपनाया
चीन: चाइनीज़ में कोडिंग, रोबोटिक्स और स्पेस टेक्नोलॉजी तक हो रही है
जापान: जापानी में इंजीनियरिंग, मेडिकल और रिसर्च
रूस: मेडिकल, मिलिट्री और विज्ञान – सब कुछ रसियन में
फ्रांस, जर्मनी: इन्होंने अपनी भाषा को “गर्व” से रखा, गूगल ट्रांसलेट से नहीं
पर भारत? यहाँ एक इंजीनियर तब तक इंजीनियर नहीं बनता जब तक वो “डाटा स्ट्रक्चर एंड एल्गोरिदम” को “आंकड़ों की रचना और क्रम” बोलकर हंसी ना उड़वाए।
हिंदी में क्यों नहीं हो सकती पढ़ाई?
कारण 1: सिस्टम में आत्मविश्वास की कमी
कारण 2: पॉलिसी में बदलाव की गति कछुए से भी धीमी
कारण 3: अंग्रेज़ी बोलने वालों की सामाजिक स्थिति “ज्ञानवान + अमीर” मानी जाती है
मजेदार बात ये है कि ग्रामीण भारत के बच्चे गणित में टॉपर निकलते हैं लेकिन जब उन्हें “Quadratic Equation” समझाया जाता है, तब वो सोचते हैं – ये गणित है या एलियन भाषा?
हिंदी में कारोबार – क्या ये मुमकिन है?
जब टाटा, पतंजलि, डाबर जैसी कंपनियाँ हिंदी में ऐड करती हैं और करोड़ों कमा लेती हैं, तो क्या व्यापार हिंदी में नहीं हो सकता?
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म आज हिंदी और 10+ भाषाओं में चल रहे हैं
ग्राहक हिंदी बोलता है, तो सेल्स हिंदी में क्यों नहीं हो सकती?
जितने लोग “बाय वन गेट वन” पर खुश होते हैं, उतने ही “एक लो दूसरा मुफ्त” पर भी मुस्कुरा उठते हैं
राजनीति में हिंदी – भाषण तो दे लेते हैं, नीति क्यों नहीं बनाते?
नेता चुनावी रैली में “अरे भाइयों और बहनों” कहकर भीड़ लूट लेते हैं, लेकिन संसद में भाषण अंग्रेज़ी में देते हैं। क्यों? क्योंकि इंटरनेशनल इमेज की चिंता ज़्यादा है, लोकल इंपैक्ट की नहीं।
अंग्रेज़ी जानना बुरा नहीं, पर हिंदी को हीन समझना बुरा है
भाषा ज्ञान की सीमा नहीं, उसका माध्यम होती है।
अंग्रेज़ी जानिए, सीखिए – लेकिन हिंदी में काम को शर्म की बात ना मानिए
डॉक्टर बनिए – लेकिन मरीज से उसकी भाषा में बात करिए
टेक्नोलॉजी लाइए – लेकिन उसे हिंदी में समझाइए
जब खुद की भाषा में बात होती है, तब ‘विकास’ सिर्फ सपना नहीं रहता
भारत की ताकत उसकी भाषाई विविधता में है, लेकिन जब तक हम खुद अपनी मातृभाषा को ‘पिछड़ा’ मानेंगे, तब तक हम ‘विकसित’ कहलाने के लायक नहीं होंगे।
हिंदी सिर्फ कविता की भाषा नहीं, कोडिंग, कानून, चिकित्सा और कारोबार की भी भाषा बन सकती है – बस चाहिए नीति, नीयत और निजता।
ख़ौफ़ से आज़ादी नहीं मिलती: अली ख़ामेनेई का जज़्बाती पैग़ाम