
भारत-पाकिस्तान संघर्ष के शांत होने के बाद केंद्र सरकार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य मित्र देशों को भारत की कार्रवाई और कूटनीतिक रुख़ से अवगत कराना है। लेकिन इस प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस नेता शशि थरूर का नाम आने के बाद राजनीतिक गलियारों में गर्मी बढ़ गई है।
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विवाद की चिंगारी: कांग्रेस की सूची में नहीं थे थरूर
कांग्रेस पार्टी की ओर से प्रतिनिधिमंडल के लिए भेजे गए चार नामों में शशि थरूर का नाम शामिल नहीं था।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने स्पष्ट किया कि पार्टी की तरफ से आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, डॉ. सैयद नासिर हुसैन और राजा बरार के नाम भेजे गए थे।
इसके बाद जब थरूर के नाम की पुष्टि सरकार की ओर से हुई, तो राजनीतिक विवाद शुरू हो गया।
शशि थरूर का जवाब: “देश पहले, दल बाद में”
शशि थरूर ने विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा:
“पार्टी को अपनी राय रखने का पूरा हक है। लेकिन यह सरकार का डेलिगेशन है और यह सरकार का फैसला था कि उन्हें किसे शामिल करना है।”
“मैं जब भी देश के लिए ज़रूरी होऊंगा, उपलब्ध रहूंगा। मेरे लिए यह राष्ट्र का सवाल है, न कि पार्टी का।”
थरूर ने यह स्पष्ट किया कि इस मामले को पार्टी पॉलिटिक्स से जोड़ना गलत होगा।
भारत की स्थिति को वैश्विक मंच पर रखना
इस प्रतिनिधिमंडल का मुख्य उद्देश्य:
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मित्र देशों को भारत की रक्षा कार्रवाई, कूटनीतिक रुख़ और शांति की प्रतिबद्धता के बारे में बताना।
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यह दिखाना कि भारत सर्वदलीय सहमति से चल रहा है, ना कि केवल सत्तापक्ष की मंशा से।
थरूर को क्यों चुना गया?
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शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अंडर सेक्रेटरी रहे हैं।
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विदेश मामलों की समझ, धाराप्रवाह अंग्रेजी और कूटनीतिक भाषा में पारंगत।
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सरकार चाहती है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की आवाज़ मजबूत और विश्वसनीय दिखे।
राष्ट्रहित या दलगत राजनीति?
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है —क्या राष्ट्रहित में दलगत सीमाओं को पार नहीं किया जाना चाहिए?
शशि थरूर का बयान एक सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण दिखाता है, जिसमें पार्टी से ऊपर देश की प्राथमिकता को रखा गया है।
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