
2025 की गर्मियों में जहां भारत के लोग आम का पना पीकर चैन की बंसी बजा रहे थे, वहीं एक कोना ऐसा भी था जहां कोरोना चिचा गुस्से से भभक रहे थे। “क्या रे! इतनी जल्दी भुला दिए?” – ये पहला वाक्य था चिचा का, जो हाल ही में सिंगापुर होते हुए भारत लौटे हैं। चेन्नई, मुंबई, अहमदाबाद में केस फिर से बढ़े हैं, लेकिन इंडियन जनता है कि मानती नहीं!
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क्या बोले चिचा
“हम सोच रहे थे कि अब तो रिटायरमेंट ले लें… सिंगापुर में शांति से रहें, लेकिन इन इंडियंस की मस्तमौला ज़िंदगी देखी, तो फिर से ताव आ गया!”
“मास्क फेंक दिए, भीड़ में नाचे, शादी में बिना सैनिटाइज़र के केक काटा – ये तो हमारा अपमान है!”
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“शाहरूख़ की फिल्म देखने गए, पर मुझे नहीं देखा?”
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“IPL में हर चौके-छक्के पर चीख, पर मेरा नाम लेने में कंजूसी!”
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“फेसबुक पर Throwback Corona Posts बंद कर दिए – ये तो अन्याय है!”
“भाईसाब, हम तो पहले भी थे… बस तुमने गेट खोल दिए और Welcome Back वाला बोर्ड नहीं लगाया!”
चिचा एक मौका देने को तैयार लेकिन:
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मास्क पहनिए – “हमसे थोड़ा पर्दा जरूरी है!”
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हाथ धोइए – “कम से कम खाना खाते वक्त तो!”
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भीड़ से दूर रहें – “थोड़ा अकेले रह लेंगे, शादी फिर हो जाएगी!”
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टेस्ट कराइए – “हम खुद सामने आ जाएंगे, आप मत छुपिए!”
भारत की जनता जितनी रंगीन मिजाज है, उतनी ही ज़िम्मेदार भी हो सकती है – बस याद दिलाने की ज़रूरत है।
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कोरोना चिचा का गुस्सा तब ही ठंडा होगा, जब हम लापरवाही को साइड में रखकर थोड़ी समझदारी दिखाएं।