
भारत के इतिहास में चोल और चालुक्य वंश दो ऐसे महत्त्वपूर्ण नाम हैं, जिनका उल्लेख किए बिना दक्षिण भारत के गौरवशाली अतीत की कल्पना अधूरी है। दोनों वंशों ने न केवल सैन्य विस्तार किया, बल्कि संस्कृति, कला, स्थापत्य और प्रशासन के क्षेत्र में ऐसी अमिट छाप छोड़ी जो आज भी स्मारकों और ग्रंथों में जीवित है।
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कितने समय तक चला इनका शासन?
चोल वंश का उत्कर्ष काल 9वीं से 13वीं शताब्दी के बीच रहा। इस काल में राजराजा चोल और राजेन्द्र चोल प्रथम जैसे शासकों ने चोल साम्राज्य को भारत से बाहर तक फैला दिया — श्रीलंका, मलेशिया और इंडोनेशिया तक।
वहीं चालुक्य वंश ने 6वीं से 12वीं शताब्दी तक अलग-अलग कालखंडों में शासन किया। चालुक्य वंश मुख्यतः बदामी, कल्याणी और पश्चिमी चालुक्य शाखाओं में बँटा रहा। विक्रमादित्य और पुलकेशिन द्वितीय जैसे शासकों ने चालुक्यों की शक्ति को शीर्ष पर पहुंचाया।
बड़ी ऐतिहासिक घटनाएं
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चोल वंश की सबसे बड़ी घटना:
राजेन्द्र चोल प्रथम द्वारा 1025 ई. में दक्षिण-पूर्व एशिया के श्रीविजय साम्राज्य पर नौसैनिक अभियान। यह भारत का पहला “अंतर्राष्ट्रीय युद्ध” कहा जा सकता है, जिसमें भारत ने समंदर पार जाकर विजय हासिल की। -
चालुक्य वंश की सबसे प्रमुख घटना:
पुलकेशिन द्वितीय द्वारा सम्राट हर्षवर्धन को पराजित करना। यह घटना उत्तर-दक्षिण टकराव में दक्षिण भारत की ताक़त को दर्शाती है।
स्थापत्य और संस्कृति में योगदान
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चोल वंश:
चोल शासकों ने बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर) जैसे भव्य मंदिरों का निर्माण कराया, जो आज भी विश्व धरोहर में शामिल हैं। इन्होंने द्रविड़ स्थापत्य शैली को विश्व प्रसिद्ध बना दिया। साथ ही, तमिल साहित्य और संगीत को भी राजकीय संरक्षण मिला। -
चालुक्य वंश:
चालुक्य स्थापत्य शैली की मिसालें बदामी, ऐहोले और पट्टदकल में देखी जा सकती हैं। पट्टदकल मंदिर समूह को यूनेस्को विश्व धरोहर का दर्जा मिला हुआ है। चालुक्य राजाओं ने संस्कृत और कन्नड़ साहित्य को खूब बढ़ावा दिया।
प्रशासन और सैन्य शक्ति
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चोल वंश ने एक सशक्त नौसैनिक शक्ति खड़ी की जो पूरे एशिया में feared थी। उनके प्रशासन में राजस्व, ग्राम सभा और जल-संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया।
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चालुक्य वंश के राजाओं ने स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहन दिया और प्रशासनिक इकाइयों में विभाजन कर अच्छी शासन व्यवस्था बनाई।
भारत के इतिहास में योगदान
चोल और चालुक्य वंशों ने मिलकर भारत को केवल राजनीतिक शक्ति नहीं दी, बल्कि सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता और स्थापत्य वैभव भी प्रदान किया। इनका शासन भारतीय सभ्यता के उस दौर को दर्शाता है जहाँ भारत विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर था — न सिर्फ़ तलवार से, बल्कि विद्या और वास्तुकला से भी।
नायक वही जो सीमा भी लांघे और सभ्यता भी रच दे
चोलों ने जहां समुद्र को जीत कर भारत की सीमाओं का विस्तार किया, वहीं चालुक्यों ने पत्थरों में ऐसी कहानियाँ लिखीं जो आज भी बोलती हैं। दोनों वंश यह साबित करते हैं कि सच्चा साम्राज्य सिर्फ़ लोहा-लश्कर से नहीं, संस्कृति और चरित्र से बनता है।