क्या अगला उपराष्ट्रपति मुस्लिम होना चाहिए? बीजेपी के लिए मास्टरस्ट्रोक या?

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)

भारत की राजनीति में जब भी चुनावी हलचल तेज होती है, नए समीकरण बनते हैं। अबकी बार चर्चा है कि बीजेपी अगला उपराष्ट्रपति किसी मुस्लिम चेहरे को बना सकती है। पहली नजर में ये “गंगा-जमुनी” विचार लगेगा, लेकिन गहराई से देखें तो यह सियासी चेसबोर्ड का शतरंजी दांव हो सकता है।

बीजेपी की यह रणनीति क्यों हो सकती है मास्टरस्ट्रोक?

  • 1. अंतरराष्ट्रीय छवि सुधार:
    जिस देश की आलोचना माइनॉरिटी ट्रीटमेंट को लेकर होती हो, वहाँ मुस्लिम उपराष्ट्रपति बनाना UN और OIC तक में चर्चा का विषय बन सकता है — पॉज़िटिव तौर पर।

  • 2. विपक्ष को रणनीतिक मात:
    विपक्ष अक्सर बीजेपी पर ‘मुस्लिम विरोधी’ होने का आरोप लगाता है। ऐसे में बीजेपी खुद को “सबका साथ” की असल व्याख्या के साथ प्रस्तुत कर सकती है।

  • 3. वोट बैंक एक्सपेरिमेंट:
    मुस्लिम वोट बैंक से सीधा फायदा न सही, लेकिन शहरी, मध्यमवर्गीय, शिक्षित मुस्लिम तबका इस सॉफ्ट इमेज को नोटिस जरूर करेगा।

विपक्ष बोलेगा—”यह सब दिखावा है”… और शायद ठीक भी कहे!

सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ़ एक “टोकनिज़्म” है? क्या एक मुस्लिम उपराष्ट्रपति बनाकर बीजेपी अपने पुराने ट्रैक रिकॉर्ड को पलट सकती है?

“असली सवाल ये है: क्या एक मुस्लिम चेहरे से करोड़ों मुस्लिमों का भरोसा जीत पाना संभव है?”

विपक्ष इसे नया ‘जुमला’ कहेगा, लेकिन अगर बीजेपी ये कदम उठाती है तो ये ‘जुमला’ भी वोट में तब्दील हो सकता है।

कौन हो सकता है बीजेपी के लिए उपयुक्त मुस्लिम चेहरा?

  • कोई शिक्षाविद या पूर्व IAS

  • अंतरराष्ट्रीय छवि वाला स्कॉलर या कूटनीतिज्ञ

  • बीजेपी के पुराने सहयोगी अल्पसंख्यक चेहरे

यानी चुनाव ऐसा हो कि ओवैसी कुछ बोले ही न पाएं, और विपक्ष सिर्फ़ भौंचक्का रह जाए।

चुनाव 2029 की तैयारी या विपक्ष का हौसला पस्त करना?

मौजूदा माहौल में बीजेपी को ये महसूस हो रहा है कि सिर्फ हिंदुत्व कार्ड काफी नहीं होगा। उसे “Inclusive Nationalism” की ज़रूरत है।

और क्या पता, एक उपराष्ट्रपति से शुरू होकर यह खेल राष्ट्रपति तक भी जाए?

अगर मुस्लिम उपराष्ट्रपति बन भी गए तो क्या होगा?

  • टीवी डिबेट्स में नई गर्मी:
    “देखिए! बीजेपी असली सेक्युलर है!”
    “नहीं! ये सिर्फ़ लिबरल को लुभाने का स्टंट है!”

  • ओवैसी जी का बयान:
    “हम ऐसे ‘रबर स्टैंप’ मुस्लिम का समर्थन नहीं करते!”
    (पर दिल में थोड़ा जलन जरूर होगी…)

राजनैतिक गणित या असली परिवर्तन?

एक मुस्लिम उपराष्ट्रपति बनाने से बीजेपी को छवि, वोट और विदेश नीति—तीनों में फायदा हो सकता है। लेकिन क्या जनता अब भी चेहरों से भ्रमित होगी, या फिर एजेंडा पढ़ना सीखा है?

यह फैसला वक्त करेगा। फिलहाल, मोदी जी और शाह जी की शतरंज पर सबकी निगाहें टिकी हैं।

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