
जब विपक्ष सोचे कि हमें तो मेहनत करनी होगी, वहीं बीजेपी ने कहा — “हम खुद ही खुद को हराने के लिए काफी हैं।”
जी हां, उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, बीजेपी के नेता ‘परिवारिक बहस’ को सार्वजनिक मंचों पर ले आए हैं। और विपक्ष? वो बस ताली बजा रहा है।
पूर्व से पश्चिम तक BJP में ‘भीतरघात का महोत्सव’
चुनाव की गर्माहट में BJP का कुनबा कुछ ज़्यादा ही ‘हॉट’ हो गया है। कोई नेता बयानबाज़ी में मशगूल है, तो कोई ‘पार्टी विद डिफरेंस’ को ‘पार्टी विद डिफरेंस ऑफ़ ओपिनियन’ बना रहा है।
बालियान बनाम सोम – मुजफ्फरनगर की महाभारत
संजीव बालियान और पूर्व विधायक संगीत सोम के बीच ‘हेल्दी डिबेट’ इतनी हेल्दी हुई कि पार्टी को उल्टी आने लगी। बयानबाज़ी से ऐसा माहौल बना जैसे एक ही पिच पर दो टीमें अलग-अलग मैच खेल रही हों।
ब्रज से लेकर अवध तक – “तू-तू, मैं-मैं” का खेल जारी
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अलीगढ़: सांसद सतीश गौतम और पूर्व मंत्री जयवीर सिंह के बीच ऐसा मतभेद हुआ कि संगठन के कान तक लाल हो गए।
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आगरा: ज़मीन का झगड़ा सांसद-मंत्री तक पहुंच गया और गूंज लखनऊ से दिल्ली तक सुनाई दी।
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मथुरा: कैबिनेट मंत्री लक्ष्मीनारायण ने सहयोगी दल RLD को लेकर जो कहा, वो पार्टी लाइन से मेल नहीं खाता था — लेकिन, उन्होंने कहा, “मेरी लाइन मेरी मर्ज़ी”।
गोंडा में ‘ब्रज भूषण’ का फ्री स्टाइल
ब्रज भूषण शरण सिंह तो हर हफ्ते ऐसा कुछ कह जाते हैं, जिससे पार्टी के प्रवक्ता को स्पष्टीकरण देने की जरूरत पड़ जाती है। कभी सपा को समर्थन करते हैं, कभी पूजा पाल की तारीफ में ट्वीट मार देते हैं।
देवरिया और मिश्रिख – “Minister vs MP” सीरीज
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राज्यमंत्री विजयलक्ष्मी गौतम पर जब स्थानीय नेता जमीन विवाद में आक्रोशित हो उठे, तो विरोध धरना-प्रदर्शन तक जा पहुंचा।

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वहीं प्रतिभा शुक्ला और सांसद अशोक रावत की सड़क पर बहस, सीधे मानहानि नोटिस तक पहुंच गई।
संगठन बोले – ‘हम देख रहे हैं’, विपक्ष बोले – ‘हम भी देख रहे हैं!’
ये सब देखकर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को अब गूगल करना पड़ रहा है:
“Party discipline kaise maintain karein – quick tips in Hindi”
और विपक्ष?
पॉपकॉर्न खा रहा है, मीम बना रहा है और सोच रहा है — “भाई, हमें क्या ज़रूरत है प्रचार करने की, बीजेपी खुद ही हमारे लिए बहुत कर रही है।”
अनुशासन या असंतोष?
बढ़ती खेमेबंदी और बयानबाज़ी ने बीजेपी को लोकतंत्र का लाइव रियलिटी शो बना दिया है। ये अंतर्कलह अगर ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ विपक्ष से ही नहीं, बल्कि अपने लोगों से भी लड़ना होगा।
जब अपनों से खतरा हो, तो दुश्मन क्या करेगा?
बीजेपी अगर इस अंदरूनी भट्टी को अब नहीं बुझाती, तो “2025 में सबसे बड़ा विरोधी खुद पार्टी ही बन सकती है।”
