छात्रा की आत्मदाह: न्याय की मांग पर भड़की सियासत और सड़कों पर बीजेडी

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

बालासोर के फकीर मोहन कॉलेज में पढ़ने वाली एक छात्रा ने जब अपने विभागाध्यक्ष पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया, तो कॉलेज प्रशासन ने शायद ‘न्याय शास्त्र’ की जगह ‘मौन शास्त्र’ पढ़ा हुआ था। महीनों तक शिकायतें फाइल होती रहीं, लेकिन कॉलेज की दीवारें मौन रहीं। क्या कर सकते हैं? कॉलेज के प्रिंसिपल को लग रहा था शायद लड़की “इंटरनल एग्ज़ाम” से डर रही होगी।

CDS बोले: बंदूकें पुरानी हो गईं, अब लड़ाई ड्रोन से होगी

सिस्टम की गर्मी में झुलसी लड़की, फिर भी “20 लाख का ठंडा ऑफर”

जब छात्रा ने हार मानकर आत्मदाह कर लिया, तब सरकार जागी — और तुरंत 20 लाख का ऐलान कर दिया। यानी जान गई, इंसाफ नहीं मिला, लेकिन “कॉम्पेंसेशन” का ऑफर फटाफट मिल गया। बीजेडी विधायक बोले, “भाईसाहब! 20 लाख में क्या इंसाफ आता है? कम से कम 2 करोड़ तो दो!”
लगता है अब इंसाफ का नया MRP तय हो गया है – और वो भी जीएसटी के साथ।

प्रदर्शन और पर्फॉर्मेंस: बीजेडी का सड़क ड्रामा

बीजेडी कार्यकर्ता न्याय की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए – और पुलिस ने स्वागत किया… आँसू गैस से! लोकतंत्र में विरोध करना अधिकार है, लेकिन ओडिशा पुलिस ने दिखा दिया कि ‘गैस’ का इस्तेमाल सिर्फ रसोई में नहीं होता।
इस बीच, पुलिस के हेलमेट वाले जवान और नारे लगाते कार्यकर्ता – मानो कोई रीमेक हो रहा हो ‘शोले’ का!

राहुल गांधी की एंट्री – ‘इमोशनल पिच’

राहुल गांधी ने छात्रा के पिता से बात की, और X (ट्विटर) पर लिखा कि वो दुख में साथ हैं। अच्छा लगा, क्योंकि राजनीति में भावना कम ही दिखती है – और चुनावी मौसम में ज़्यादा!

गिरफ़्तारी हुई… पर पहले नींद खुलती तो शायद जान बचती

प्रिंसिपल और विभागाध्यक्ष दोनों को अब गिरफ्तार किया गया है। सवाल ये है कि अगर पहले कार्रवाई होती, तो क्या आज लड़की ज़िंदा होती?
या फिर सिस्टम भी सोचता है – “पहले एक धमाका हो जाए, तभी जागें।”

“मुझे न्याय नहीं मिला, इसलिए मैं जा रही हूँ” – समाज के लिए आईना

यह सिर्फ एक लड़की की कहानी नहीं, बल्कि हमारे समाज की चुप्पी का नतीजा है। हम तभी सुनते हैं जब किसी की चीख आग बन जाए।
एक लड़की ने हिम्मत दिखाई, आवाज़ उठाई, शिकायत की – लेकिन जवाब में मिला “हम देख रहे हैं, जांच चल रही है” वाला सरकारी टेप रिकॉर्डर।

अब हर दुख का ‘रेट कार्ड’ बनाओ – नया इंडिया मॉडल!

राजनीति ने हर भावनात्मक मुद्दे को अब नंबर में बदल दिया है।

  • जान गई? → 20 लाख

  • बहुत बवाल हो गया? → 2 करोड़

  • और बवाल हो जाए? → मंत्री इस्तीफा

ये सब देख लगता है कि इंसाफ अब कोर्ट में नहीं, “पैकेज” में मिलता है।

सोचिए, वरना अगली हेडलाइन आप हो सकते हैं

इस घटना ने फिर से साबित कर दिया है कि समाज में न्याय सिर्फ दस्तावेज़ों में है। कॉलेज प्रशासन, पुलिस और सरकार की बेरुख़ी ने मिलकर एक बेटी को जिंदगी से हारने पर मजबूर कर दिया।

और अंत में यही कहना सही रहेगा:

“इंसाफ सिर्फ मांगने से नहीं मिलता… पहले उसे प्राइस टैग देना पड़ता है!”

मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं? ये नंबर आपके लिए है:

जीवनसाथी हेल्पलाइन – 1800 233 3330
बात करें, सुने जाएँ – चुप्पी कभी समाधान नहीं होती।

अखिलेश केदारनाथ बना बैठे, शंकराचार्य बन बैठे क्या-अब काबा भी बनवायेंगे ?

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