
“गिनती भइल त अब गिनाए के बारी बा!” — बिहार में 2025 के चुनाव ठीक उहे बखत बा जब सियासत ‘विकास’ से ना, ‘जाति’ से मापल जा रहल बा।
जात के गिनती से बिहार में मच गइल घमासान, कौन बनले नया खिलाड़ी!
राजनीति के अखाड़ा में के बा अगुआ?
तेजस्वी यादव (RJD):
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जातीय जनगणना के मुद्दा पर तेजस्वी पूरा जोश में बा।
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EBC-OBC के 63% आंकड़ा लहर की तरह बा, जेकरा पर ऊ ‘न्याय के नया ध्वजवाहक’ बनके सामने आवे के कोशिश में बाड़ें।
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युवजन के साथ-साथ दलित-पिछड़ा गठजोड़ बनावे के रणनीति।
नीतीश कुमार (JDU):
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‘जनगणना के जनक’ बताके फिर से पिछड़ा वर्ग के मसीहा बनल चाहत बाड़ें।
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NDA छोड़के INDIA गठबंधन में आवे के फैसला उनकर राजनीतिक पुनर्जन्म साबित हो सकेला।
BJP (NDA):
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खुल्ला विरोध नइखे, लेकिन भीतर ही भीतर ‘जातीय ध्रुवीकरण’ से असहज बा।
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अब तक ‘मोदी मैजिक’ पर टिकल बाड़े, लेकिन 2025 में जाति के आँधी में ऊ जादू चलेला कि ना – देखे के बा।
जातीय जनगणना: आंकड़ा आ राजनीति के तीर
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EBC+OBC = 63%+, यानी अब हर पार्टी के टिकट वितरण, घोषणापत्र आ नारों में पिछड़ा ही अगड़ा बा।
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सवर्ण वोट बैंक अब संकुचित दबाव में बा, कुछ वर्ग विरोध में खुलकर आ सकत बा।
Bihar Election 2025 के Five Possible Scenes:
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RJD+JDU का गठबंधन बहुमत छू सकेला – जातीय जनगणना के ‘सोशल इंजीनियरिंग’ सफल हो सकेला।
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BJP नया समीकरण (पासवान+सवर्ण+महादलित) गढ़े – अगर सही नेतृत्व मिलल त।
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कांग्रेस भुमिका सिर्फ सहयोगी के – नेतृत्व के असहजता अबो बनी बा।
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छोट पार्टी (VIP, HAM) किंगमेकर बन सकेले – जाति विशेष में पकड़ के कारण।
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जनता कह सकेले – ‘जाति से हट के विकास पर वोट देब’ – लेकिन ई संभावना अभी दूर बा।
प्रमुख चेहरे और गठबंधन
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तेजस्वी यादव (RJD): युवा मतदाताओं और बेरोजगारी के मुद्दों पर केंद्रित।
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नीतीश कुमार (JD(U)): अनुभवी नेता, लेकिन लोकप्रियता में गिरावट।
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प्रशांत किशोर (जन सुराज): राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बनने की कोशिश।
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सम्राट चौधरी (BJP): स्थानीय नेतृत्व में उभरते हुए।
जातीय जनगणना और सामाजिक समीकरण
जाति आधारित जनगणना ने चुनावी रणनीतियों को प्रभावित किया है। OBC और EBC की आबादी 63% से अधिक होने के कारण, आरक्षण और प्रतिनिधित्व के मुद्दे केंद्र में हैं। RJD और JD(U) इस मुद्दे को सामाजिक न्याय के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जबकि BJP विकास और राष्ट्रवाद पर जोर दे रही है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जातीय समीकरण, युवा मतदाता, और नए राजनीतिक चेहरे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। NDA और महागठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला है, जबकि नए दल और नेता भी चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकते हैं।
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