
बिहार में चुनाव आते ही नेताओं का मिज़ाज बदल गया है — कोई गठबंधन में है, पर सीट मिलते ही बाहर जाने को तैयार। कुछ पार्टियाँ गठबंधन में हैं, पर सीट न मिलने पर “फ़्रेंडली फाइट” का विकल्प खुला रखती हैं।
मतलब साफ़ है — “हम सब साथ हैं, जब तक मेरी सीट पक्की है!”
मोदी के हनुमान बनाम सीटों के वानर सेना
एनडीए में इस समय चिराग पासवान खुद को “मोदी का हनुमान” बता रहे हैं, लेकिन उनकी पूंछ को सीट बंटवारे की आग छू गई है।
चिराग बोले: “हमने लोकसभा में 100% स्ट्राइक किया, अब सीट तो बनती है ना बॉस!”
मांझी जी बोले: “हमें 20 सीट चाहिए, नहीं दी तो 100 पर लड़ेंगे।”
कुशवाहा बोले: “हम शांति प्रिय हैं, लेकिन गूगल कैलेंडर में मीटिंग शेड्यूल कर रखी है।”
इसे देखकर लगता है, NDA में ‘सीट’ का मतलब अब ‘सीरियस इमोशनल एंड थ्रेट’ बन गया है।
महागठबंधन: मिलकर लड़ना है, लेकिन तू पहले पीछे हट
महागठबंधन में सबको सब चाहिए — राजद को लीड चाहिए, कांग्रेस को 70 सीट, माले को 40, VIP को 60!
अब गठबंधन करे तो कैसे?
तेजस्वी बोले: “हम तो सबके बड़े भाई हैं।”
कांग्रेस बोली: “हम पुराने दोस्त हैं, त्याग का समय अब नहीं है।”
माले बोली: “राजद और कांग्रेस कम सीट लें, हम बढ़ाएं — सोशल इंजीनियरिंग ज़िंदाबाद!”
गठबंधन की हालत ऐसी है जैसे कोई शादी के मंडप में सब बाराती DJ पर लड़ रहे हों कि कौन पहले डांस करेगा।
जब सहयोगी दल बोले — सीट नहीं तो ‘सेपरेट बैचलर’ लड़ेंगे!
हम पार्टी, जो एनडीए की “स्वाभाविक सहयोगी” है, सीट कम मिली तो फ्रेंडली फाइट का आइडिया लेकर आई है।
मतलब:
“हम रिश्ते में NDA के हैं, लेकिन लड़ेंगे तो अपने मन की“।
राजनीति में ये नया ट्रेंड चल पड़ा है — “फ्रेंडली तलाक़, फ्रेंडली लड़ाई, फ्रेंडली गठबंधन”।
जनता पूछ रही है — “पार्टियाँ दोस्त हैं या Tinder match?”
सन ऑफ़ मल्लाह की डिमांड: 11% वोट = 60 सीट!
मुकेश सहनी, VIP प्रमुख और राजनीति के Sun of Mallah, इस बार पूरे मूड में हैं।
बोले, “हमारे पास 11% वोट है, हम 60 सीट मांगते हैं।” साथ ही बोले, “जरूरत पड़ी तो राजद हमारे सिंबल पर भी लड़ सकता है।” ये सुनकर गठबंधन नेताओं की हालत वैसी हो गई जैसे कोई जियो सिम मांगकर एयरटेल का नेटवर्क यूज़ करना चाहता हो।
2020 का दर्द, 2025 का डर: LJP(R) की परफॉर्मेंस बनाम आत्मविश्वास
चिराग पासवान की पार्टी ने पिछले विधानसभा में 135 सीटों पर लड़ाई लड़ी, और 110 पर जमानत ज़ब्त करवाई — लेकिन एक जीत ने जेडीयू की 43 सीटों की नींद उड़ाई।
अब वो परफॉर्मेंस को पासबुक बनाकर NDA से कह रहे हैं — “देखो हमने कैसे हरा दिया, अब हमें सीटें दो वरना… déjà vu आ जाएगा!”

महागठबंधन में सीटों पर Tug of War, मोहब्बत नहीं मशक्कत है!
VIP, माले और कांग्रेस सभी 60-40-70 की गणित में हैं। राजद के चितरंजन गगन कहते हैं — “तालमेल है, चिंता की बात नहीं।”
लेकिन सीटों की छीना-झपटी देख ऐसा लगता है जैसे हर पार्टी “बच्चन पांडे” मोड में है — “सीट हमारी मां है… और मां पर कोई समझौता नहीं!”
कुछ सीटें सबकी हैं — मटिहानी, अलौली, सिमरी बख्तियारपुर में बवाल
मटिहानी: LJP(R) ने जीती थी, अब जेडीयू कहती है — “हमारे पास ही रहे।”
अलौली: RJD जीती, लेकिन VIP मांग रही है — “हमारे बेटे यशराज पासवान के लिए चाहिए।”
बछवाड़ा: CPI बनाम कांग्रेस का राजनीतिक क्रिकेट मैच चल रहा है।
हर सीट पर 2-3 दावेदार, जैसे IPL की मिनी ऑक्शन हो रही हो — “Going once, Going twice, SOLD to whoever shouts louder!”
Tejashwi की ‘बिहार अधिकार यात्रा’: अकेले चल पड़े हैं मंज़िल की ओर
तेजस्वी यादव इन दिनों बिहार अधिकार यात्रा पर हैं — पर गठबंधन के किसी नेता को साथ नहीं लिया। लगता है, गठबंधन पर भरोसा कम और Swiggy Instamart की स्पीड पर ज्यादा भरोसा है — “खुद करो, तभी होगा!”
बीजेपी कहती है —“ये राहुल गांधी की यात्रा का जवाब है।”
राजनीतिक जानकार कहते हैं — “ये यात्रा ज्यादा तेज़ चली तो गठबंधन पीछे छूट सकता है।”
गठबंधन की कुर्सी हिल रही है, लेकिन नेता मान नहीं रहे
बिहार में इस समय हर पार्टी को सीट चाहिए, और हर नेता को भरोसा है कि “हम ना होते तो गठबंधन होता ही नहीं।”
जनता देख रही है — “नेता सीट पर लड़ रहे हैं,
जनता पेट पर…” और सबसे बड़ी बात — चुनावी गणित से ज़्यादा, इमोशनल ब्लैकमेल और प्रेस कॉन्फ्रेंस पॉलिटिक्स चल रही है।
NDA और महागठबंधन, दोनों गठबंधन वालों को चाहिए कि एक बार बैठ जाएं और साफ-साफ बात कर लें।
वरना जनता 2025 में बोलेगी —“सीटों की लड़ाई में, सीट ही छिन गई!”