
बिहार में एक बार फिर चुनावी चावल पक रहा है — कोई दाल गलाने की कोशिश में है, तो कोई तंदूरी मुद्दे सेंक रहा है।
NDA मैदान में है नीतीश कुमार की “विकास की योजना” और मोदी की “विश्वास की गारंटी” के साथ, जबकि दूसरी ओर तेजस्वी यादव युवा जोश और बेरोज़गारी जैसे ज्वलंत मुद्दों को लेकर हीरो मोड में आ चुके हैं।
नीतीश कुमार: अबकी बार नीतियों का प्रयोग
नीतीश कुमार, जो कभी “सुशासन बाबू” कहलाते थे, अब “योजना कुमार” बन चुके हैं।
2025 में वो नई योजनाओं के पोस्टर से बाहर निकलकर जनता के दिल में जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं — लेकिन सवाल ये है कि:
“क्या जनता अब भी Wi-Fi, नल-जल और सात निश्चय में Wi-Fi ढूंढ रही है?”
NDA का फोकस है:
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सड़क और रोजगार योजनाएं
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PM मोदी का चेहरा और केंद्र का समर्थन
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और थोड़ा बहुत गठबंधन धर्म की मजबूरी
तेजस्वी यादव: बेरोज़गारी पर राजनीति या असली हीरो?
तेजस्वी यादव इस बार कोई क्रिकेट नहीं खेल रहे — वो फुल टाइम नेता बन चुके हैं।
“10 लाख नौकरी” का वादा अब “पक्की नौकरी” के नारों में बदल गया है। युवा वर्ग उनके साथ है, और विपक्षी दलों की एकता (जो कभी-कभी खो जाती है) अब धीरे-धीरे पटरी पर आ रही है।
उनकी स्ट्रैटजी:
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बेरोज़गारी को राष्ट्रीय मुद्दा बनाना
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मोदी-नीतीश के पुराने वादों को आइना दिखाना

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और “बिहार बनाम बाहरी मॉडल” का नैरेटिव बनाना
चुनाव में क्या फट सकता है – बम या जुमला?
बिहार चुनावों में हर बार कुछ नया होता है:
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कभी लालू का डंका,
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कभी नीतीश की पलटी,
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कभी भाजपा का चमत्कार,
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और अब…?
जनता खुद पूछ रही है — “अबकी बार किसकी सरकार?”
तो आख़िर होगा क्या? जनता बोलेगी या गठबंधन झोलेगी?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार की जनता गंभीर भी है और ज़बरदस्त भी। उसे काम भी चाहिए और ड्रामा भी।
NDA को जहां मोदी मैजिक और नीतीश की नीति पर भरोसा है, वहीं विपक्ष को उम्मीद है कि तेजस्वी का टैलेंट, बेरोज़गारी का मुद्दा और थोड़ा बहुत “सरकार से नाराज़गी” उन्हें बढ़त दिलाएगी।
नेता बदलते हैं, गठबंधन बदलते हैं… लेकिन जनता की उम्मीदें नहीं बदलतीं — वो आज भी नौकरी मांगती है, बिजली-जल मांगती है, और नेता से एक ही चीज़ पूछती है: ‘भैया, इस बार भी सपना ही दिखाओगे क्या?'”
