महागठबंधन से तेजस्वी की वापसी की आस, कांग्रेस ने किया पासा फ़ेल

अजमल शाह
अजमल शाह

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने महागठबंधन की उम्मीदों की झोपड़ी में ऐसा तूफ़ान मारा कि सीधा खंभा ही उखड़ गया। तेजस्वी यादव, जो सत्ता में धमाकेदार वापसी का सपना देख रहे थे, उन्हें सबसे बड़ा झटका कांग्रेस की परफॉर्मेंस ने दे दिया—60+ सीटों पर लड़कर सिर्फ 5 सीटों पर बढ़त। यानी मेहनत सौ, नतीजा पांच!

उधर एनडीए रुझानों में ऐसी लैंडस्लाइड पर सवार है कि नीतीश कुमार 10वीं बार सत्ता की कुर्सी पर बैठने की ओर बढ़ते दिख रहे हैं।

राजद भी इस बार पिछली बार वाली चमक खो बैठी। 2020 में 74 सीटें, और अब रुझानों में करीब 36 पर अटकी—सीधा आधा!

और मुकेश सहनी… भाई साहब का डिप्टी सीएम वाला सपना भी इस बार वन-सेट शो तक सीमित हो गया।

सीट बंटवारे में ‘महाभारत’ — फ्रेंडली फाइट से हुआ नुकसान

महागठबंधन सीट बंटवारे को लेकर आखिरी वक्त तक ऐसे उलझा जैसे घर में दो भाई एक चम्मच के लिए लड़ रहे हों। नतीजा—12 सीटों पर दोस्ताना लड़ाई
मतलब एक ही घर के दो उम्मीदवार मैदान में… और जनता कह रही थी: “हम किसे वोट दें? बड़ा पापा या छोटा पापा?”

कांग्रेस की ‘ठंडी बॉडी लैंग्वेज’ — तेजस्वी को CM फेस कहने से परहेज़

कांग्रेस सीटें ज़्यादा, भावनाएं कम लेके मैदान में उतरी। सीट बंटवारे से नाराज़ भी, और तेजस्वी को CM फेस बताने में भी हिचकिचाहट
राहुल गांधी ने भी मंच से इस मुद्दे पर चुप्पी साधकर पूरी कॉन्फ्यूजन भरी। आखिरी दिन की बैठक में तो ऐसा लग रहा था कि सभी नेता एक कमरे में हैं, मगर दिल कहीं और

राहुल गांधी की सीमित एंट्री — और लोकल मुद्दे बैकसीट पर

राहुल गांधी प्रचार में आए तो सही, लेकिन उतने अटैक मोड में नहीं दिखे। वोट चोरी का मुद्दा उठाया, मगर बिहार की जनता को यह स्थानीय मुद्दा कम और दिल्ली का प्रोजेक्ट ज्यादा लगा। मतलब: कनेक्शन मिस!

NDA की ‘मॉमेंटम वाली सौगातें’ — खासकर महिलाओं को 10 हजार रुपये

सवा करोड़ महिलाओं को एकमुश्त 10 हजार रुपये देना चुनाव का टर्निंग पॉइंट बनकर उभरा। बिहार की महिलाएं बोलीं: “जो पैसा दिया है, वही वोट पाएगा!” और सरकार का आखिरी महीनों का परफॉर्मेंस मतदाताओं को काफी पसंद आया।

कांग्रेस का कमजोर वोट ट्रांसफर — ना अपनी सीट बची, ना गठबंधन का फायदा

सीमांचल को छोड़कर बाकी इलाकों में कांग्रेस बिल्कुल भी वोट ट्रांसफर नहीं करवा पाई। पिछली बार की जीती सीटों पर भी उसका परफॉर्मेंस कमजोर रहा। कुल मिलाकर—महागठबंधन का इंजिन कांग्रेस ने ही धुआँ-धुआँ कर दिया।

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